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आमुखम
अफसाई विगयगेही, सद्दरूवे सुमुच्छिए छमत्ये वि परक्कममाथे, जो पमायं सई पि
विरए ग्रामसम्मेहि, रोपति माहणे सिसिरंमि एगदा भगवं छायाए झाइ
आहारनिद्रा प्रियाप्रिय तितिक्षाप्रभूतयः प्रकल्पा अपि ध्यानस्य परिकरभूता एव आहारविषये अवमीदर्यस्य रूक्ष भोजनस्य च उल्लेखा विद्यन्ते । द्वित्रिपञ्चदिव सोपवासानामुल्लेखस्ति पाण्मासिक्यायाः तपस्यायाः उल्लेखः कथं नास्तीति प्रश्नः । षण्मासपर्यन्तं अपानं कृतमिति निर्दिष्टमस्ति । अत्र एते प्रश्नाः समुद्भवन्ति
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किं भोजनं कृतं पानीयं न पीतम् ?
अथवा पानीयं न पीतं भोजनमपि च न कृतम् ? अथवा ''अभिविता" इति पदयोः प्रयोगः भोजनायें कृतः स्यात् ?
शाति । वियत्या ।'
एषु प्रश्नेषु उत्तरवर्तिप्रश्नद्वयमेव अधिकं विमर्शार्ह वर्तते। तत्र पानीयं न पीतमिति महत्तपः, तदर्थ अपानकस्य तपसो निर्देशः कृतः, भोजनं न कृतमिति तु तदन्त तमेवेति स्वयं गम्यम् ।
अबहुवाई | आसी य ॥
निद्रायाः प्रश्नोsपि ध्यानेन संबद्धोस्ति । साधारणतया य उचितं कालं न निद्राति तस्य शारीरिकं स्वास्थ्यं मानसिक चापि न सम्यगवतिष्ठते। भगवान् सार्धद्वादश वार्षिक साधनाकाले प्रायः जागरूकत्वमभजत्, निद्राया कालावधिः मुहूर्तमपि नास्पृशत्।
'अप्पं बुइएsपडिभाणी ।"
'रोयई माहने अडवाई
वचनगुप्तिमानं वा भगवता सम्यगाराधितम् । अस्मिन् दीर्घे साधनाकाले प्रायः मौनमासेवितम् । इमे निर्देशास्तां स्थिति स्पष्टयन्ति
'पति माने अबचाई।"
१. आयारो, ९।४।१५ ।
२. वही, ९।४।३ ।
३. वही, ९।४।१,४,५ ।
४. वही, ९।४१६ ।
५. वही, ९।४।५ ।
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'भगवान् क्रोध, मान, माया और लोभ को शांत कर, आसक्ति को छोड, शब्द और रूप में अमूच्छित होकर ध्यान करते थे। उन्होंने ज्ञानावरण आदि कर्म से आवृत दशा में पराक्रम करते हुए भी एक बार भी प्रमाद नहीं किया ।'
'भगवान् शब्द आदि इन्द्रिय विषयों से विरत होकर बिहार करते थे । वे बहुत नहीं बोलते थे । वे शिशिर ऋतु में छाया में ध्यान करते थे ।'
आहार, निद्रा और प्रिय अप्रिय में तितिक्षा आदि के निर्देश भी ध्यान के परिकर ही है। आहार के विषय में अवमदर्द और रूक्ष भोजन के उल्लेख मिलते हैं। दो, तीन, पांच दिनों के उपवास का उल्लेख प्राप्त है, किन्तु भगवान् की छह मासिक तपस्या का उल्लेख क्यों नहीं है, यह प्रश्न उठता है। भगवान् ने छह महीनों तक पानी नहीं पीया, यह निर्दिष्ट है । यहां ये प्रश्न उत्पन्न होते हैं
क्या भगवान् ने भोजन किया और पानी नहीं पीया ? अथवा पानी भी नहीं पीया और भोजन भी नहीं किया ? अथवा 'अपिइत्थ' तथा 'अपिवित्ता' - इन पदों का प्रयोग भोजन के अर्थ में किया गया ?
इन प्रश्नों में उत्तरवर्ती दो प्रश्न ही अधिक विमर्शनीय हैं । 'पानी नहीं पीया' यह महान् तप है, उसके लिए अपानक तप का निर्देश किया है। भोजन नहीं किया, वह तो उसके अन्तर्गत ही है, यह स्वयं गम्य है ।
निद्रा का प्रश्न भी ध्यान से संबद्ध है । सामान्य रूप से जो व्यक्ति उचित समय पर नींद नहीं लेता उसका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी समीचीन नहीं रहता। भगवान् साढे बारह वर्ष के साधनाकाल में प्रायः जागृत रहे नींद की कालावधि एक मुहूर्तमात्र भी नहीं थी ।
भगवान् ने वचनगुप्ति अथवा मौन की सम्यग् आराधना की । इतने लंबे साधनाकाल में भी वे प्रायः मौन ही रहे । ये निम्न निर्देश उस स्थिति को स्पष्ट करते हैं
'पूछने पर भी बहुत कम बोलते थे ।'
'वे प्रायः मौन रहते थे—आवश्यकता होने पर भी कुछ-कुछ बोलते थे।'
वे बहुत नहीं बोलते थे।'
६. वही, २०४६
७. वही, ९ २ ५, ६, ९०४ । १५ ।
८. वही, ९।१।२१।
९. वही, ९।२।१० ।
१०. वही, ९।४।३ ।
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