SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अ० ८. विमोक्ष, उ० ५-६. सूत्र ८३-६७ ३८५ ६०. ओमचेलिए। सं०-अवमचेलिकः । .. वह अल्प (अतिसाधारण) वस्त्र धारण करे। ६१. एवं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं । सं०-एतत् खलु वस्त्रधारिणः सामग्रयम् । यह वस्त्रधारी भिक्षु की सामग्री (उपकरण-समूह) है। ६२. अह पुण एवं जाणेज्जा-उवाइक्कते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णं वत्थं परिदृवेज्जा, अहापरिजुण्णं वत्थं परिटवेत्तासं०-अथ पुनः एवं जानीयात् ---उपातिक्रान्तः खलु हेमन्तः, ग्रीष्मः प्रतिपन्नः, यथापरिजीर्ण वस्त्रं परिष्ठापयेत्, यथापरिजीणं वस्त्रं परिष्ठाप्य --- भिक्षु यह जाने कि हेमन्त बीत गया है, ग्रीष्म ऋतु आ गई है, तब वह यथा-परिजीर्ण वस्त्रों का विसर्जन करे। उनका विसर्जन कर देखें -४३-५०। भाष्यम् ८५-९२-द्रष्टव्यम्-४३-५० । ६३. अदुवा अचेले। सं०-अथवा अचेलः। या वह अचेल (वस्त्र-रहित) हो जाए। १४. लाघवियं आगममाणे । सं० --लाघविकं आगच्छन् । वह लाघव का चिन्तन करता हुआ वस्त्र का कमिक विसर्जन करे। ६५. तवे से अभिसमण्णागए भवति । सं०-तपस्तस्य अभिसमन्वागतं भवति । अल्प-वस्त्र वाले मुनि के उपकरण-अवमौदर्य तथा कायक्लेश तप होता है। १६. जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सम्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया। सं०-यदिदं भगवता प्रवेदितं, तदेव अभिसमेत्य सर्वतः सर्वात्मतया समत्वं समभिजानीयात् । भगवान् ने जैसे अल्प-वस्त्रत्व का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर सब प्रकार से, सर्वात्मना (संपूर्ण रूप से) समत्व का सेवन करे-किसी की अवज्ञा न करे। भाष्यम् ९३-९६-द्रष्टव्यम्-८।५३; ६।६३-६५। देखें-८।५३; ६।६३-६५ । ६७. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ–एगो अहमंसि, न मे अस्थि कोइ, न याहमवि कस्सइ, एवं से एगागिणमेव अप्पाणं समभिजाणिज्जा। सं०-यस्य भिक्षोः एवं भवति–एकोऽहमस्मि, न मे अस्ति कोऽपि, न चाहमपि कस्यचित्, एवं स एकाकिनमेव आत्मानं समभिजानीयात् । जिस भिक्षु का ऐसा अध्यवसाय होता है-मैं अकेला हूं, मेरा कोई नहीं है, मैं भी किसी का नहीं हूं। इस प्रकार वह भिक्षु अपनी आत्मा को एकाकी ही अनुभव करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy