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आचारांगमाध्यम
२१. हिंसा का प्रवर्तक वचन अनार्यवचन
० आर्य-अनार्य का अर्थ-बोध २२-२४. आर्यों द्वारा प्रतिपादित तथ्य २५-२६. दार्शनिकों से प्रश्न-क्या आपको दुःख प्रिय है या
अप्रिय ?
० अहिंसा परायण मुनि का उत्तर २७-३९. सम्यग् तप २७. अहिंसा से विमुख जगत् की उपेक्षा
. उपेक्षा का अर्थ-बोध २८. धर्म का ज्ञाता मृतार्च ___० देहासक्ति से विमुक्तता और ऋजुता धर्मविद् होने
की कसौटी २९. दुःख का मूल हिंसा ३०-३१. दुःख-मुक्ति का उपाय-परिज्ञा ३२. कर्मक्षय का उपाय-अन्यत्वानुप्रेक्षा, एकत्वानुप्रेक्षा
० कषाय-आत्मा के अपकर्षण का क्रम ३३. कर्म-शरीर के नाश के लिए अग्नि का दृष्टांत ३४. क्रोध के अपनयन का उपाय'
३५. क्रोध से दुःख की सृष्टि ३६-३७. क्रोध से उत्पन्न कष्ट और रोग
३८. अनिदान-बन्धनमुक्त कौन ?
३९. त्रिविद्य पुरुष प्रतिसंज्वलन न करे ४०-५३. सम्यग-चारित्र ४०. संयम-जीवन की तीन भूमिकाएं
• आपीडन, प्रपीडन और निष्पीडन की व्याख्या ४१. उपशांत के कर्मक्षय का कालमान ४२. महावीर के मार्ग की दुरनुचरता ४३. कामासक्ति के प्रतिकार का उपाय ४४. समुच्छय और ब्रह्मचर्य का अर्थ-बोध ४५. जितेन्द्रियता की साधना के बाधक तत्त्व
४६. आदि, अन्त और मध्य की मीमांसा ४७-४८. आरम्भ से उपरत कौन ?
४९. विषयाशंसा से प्रेरित मनुष्य की दशा ५०. निष्कर्मदर्शी बनने का उपाय
• आचार्य अमृतचन्द्र का कथन ५१. कर्म की अवन्ध्यता
• कर्म का अर्थ और धारणा ५२. सम्यक्त्व का फल
५३. द्रष्टा निरुपाधिक होता है पांचवां अध्ययन १-१८. काम
१. अर्थहिंसा और अनर्थहिंसा
२. हिंसा के तीन प्रयोजन - ० काम की दुस्त्यजता
• चार पुरुषार्थ ३. मदनकाम प्रधान पुरुष सुख से दूर
• 'मार' शब्द के विभिन्न अर्थ ४. कामी पुरुष की मनोदशा ५. कामासक्त व्यक्ति जीवन की अनित्यता से अजान ६-८. मोहासक्ति से भवचक्र
९. संशय को जानना संसार को जानना है १०. इन्द्रियजयी मैथुन से विरत ११. मंदमति की दोहरी मूर्खता १२. भोग धर्म से बाह्य हैं १३. शरीर की आसक्ति से विषयासक्ति १४. आसक्तिचक्र में फंसे मनुष्य के दुःख की परम्परा १५. तीन प्रकार के मनुष्य- अल्पेच्छ, महेच्छ तथा
इच्छारहित १६. विषयाकांक्षा से अशरण को शरण मानना १७. एकलविहार के अयोग्य की चर्या
१८. जन्म-मरण के आवर्त में चक्कर १९-३०. अप्रमाद का मार्ग
१९. अनारंजीवी कौन ? २०. अनारंभजीवी को होता है 'संधि' का साक्षात्कार
• 'संधि' पद का अर्थ-बोध • प्राचीन ग्रन्थों के सन्दर्भ में 'संधि' पद की
मीमांसा • अतीन्द्रियज्ञान की रश्मियों का निर्गमन 'संधि'
० 'करण' पद का अर्थ ० सुश्रुतसंहिता में २१० संधियां और १.७
मर्म-स्थल • मर्म-स्थल की परिभाषा २१. ध्यान-सूत्र २२-२३. अप्रमाद का मार्ग
० उत्थित होकर प्रमाद न करने का कारण • जलकुंभी का उदाहरण • प्रमाद और अप्रमाद दशा में उदीरणा और
संक्रमण क्या? कैसे? २४. सुख-दुख अपना-अपना २५. नाना अध्यवसाय, नाना सुख-दुःख २६. अनारंभजीवी और सूक्ष्म जीवलोक २७. सम्यक्-पर्याय कौन ? २८. तपस्वी और संयमी रोग से आक्रांत क्यों ?
• संयम और रोग की भिन्न हेतुकता
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