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________________ मूल सूत्र तथा भाष्यगत विषय-विवरण ५६. अनन्यपरम के प्रति अप्रमत्त रहने का निर्देश जीवन-यात्रा के लिए परिमित भोजन का विवेक ५७. रूप अर्थात् पदार्थ के प्रति विरक्ति • वैराग्य का निर्वचन . ५८. विराग का आलम्बन-आगति और गति का ज्ञान ५९-६०. अतीत और अनागत की सम्बन्ध-योजना के विभिन्न मत ६१. अरति और रति के रेचन का उपाय ६२. मित्र कहां-भीतर या बाहर ? ६३. जो उच्चालयिक वह दूरालयिक ६४. दुःख-मुक्ति का उपाय --आत्म-निग्रह ६५. आत्म-निग्रह का साधन ६६. मृत्यु का अन्त कैसे? ६७. श्रेय का साक्षात्दर्शी कौन ? ६८. प्रमाद का हेतु ६९. रागझंझा और द्वेषझंझा का उत्पादक ७०. लोक के दृष्ट-प्रपंच से मुक्त कौन ? ७१-८७. कषाय-विरति ७१. लोक के दृष्ट-प्रपंच से मुक्त होने की प्रक्रिया ७२. पश्यक का दर्शन : कषाय विरेचन • उपरतशस्त्र की परिभाषा ७३. आदान का निषेध : कर्म का भेदन ७४. एक को जानना है सबको जानना ० एक वस्तु का स्वभाव समस्त वस्तुओं का स्वभाव ० जो सबको नहीं जानता, वह एक 'आकार' अक्षर को भी नहीं जानता • मलधारि हेमचन्द्रसूरी का अभिमत ७५. प्रमत्त को भय, अप्रमत्त को भय नहीं ७६. एक कषाय का नाश, सभी कषायों का नाश • कषाय-वमन के दो प्रकार ७७. कषाय का क्षपण-वमन ७८. लोक-संयोग का त्याग और महायान पर प्रस्थान • संयम-पर्याय और तेजोलेश्या का सम्बन्ध • संयम-पर्याय के साथ तेजोलेश्या का संवर्धन ७९. क्षपणक्रिया का स्वरूप ८०.क्षपकश्रेणी में आरूढ होने के इच्छक अनगार की दो अर्हताएं ८१. अप्रमत्तता से अभय • अकषायी को दुःख नहीं ८२. शस्त्र उत्तरोत्तर तीक्ष्ण, अशस्त्र एकरूप ८३. दुःख के मूल कारणों का निर्देश • एक कारण से दूसरे कारण की संयुति ८४. दुःख के कारणों का क्रमशः नाश ८५. पश्यक का दर्शन ५६. आदान के संवरण से कर्म-भेदन । ८७. द्रष्टा के उपाधि नहीं चौथा अध्ययन १-११. सम्यग्वाद : अहिंसा-सूत्र १. अर्हत् द्वारा प्रतिपादित अहिंसा-सूत्र • प्राण, भूत, जीव और सत्त्व का निर्वचन ० अहिंसा-सूत्र के पांच आदेश २. अहिंसा धर्म शुद्ध, नित्य और शाश्वत • धर्म का मूल स्रोत आत्मज्ञता, बुद्धि नहीं • आत्मवित् सर्वविद् ३. धर्म के प्रतिपादन का उद्देश्य सार्वभौम और उसके दस विकल्प ४. 'सव्वे पाणा ण हतब्वा'-सम्यग्दर्शन का वाचक ० रोचक-सम्यग्दर्शन और कारक-सम्यग्दर्शन ५. अहिंसा व्रत को आजीवन पालन करने का निर्देश और उसका कारण ६-७. अहिंसा व्रत की अनुपालना में दो बाधाएं __• दृष्ट शब्द का विशेष अर्थ ८. अहिंसा या अध्यात्म का आधारभूत तत्त्व ९. अहिंसा-सूत्र की कालिकता और वैज्ञानिकता १०. गतिचक्र का हेतु-हिंसा में लीनता ११. प्रमत्त व्यक्ति धर्म से बाहर • प्रमाद और हिंसा तथा अप्रमाद और अहिंसा की अनुस्यूति १२-२६. सम्यग्ज्ञान : अहिंसा सिद्धांत की परीक्षा १२. जो आस्रव हैं वे परिस्रव हैं, जो परिस्रव हैं वे आस्रव हैं • चार विकल्प • कर्म-बंध और कर्म-निर्जरण के रहस्य . कर्मवाद के रहस्यों की अवगति की फलश्रुति १३. धर्म-बोध किनको? १४. अहिंसा को स्वीकार करने वाले कौन-कौन ? • आर्त्त के प्रकार १५. भाव-परिवर्तन की यथार्थता १६. संबोधि के दो आलम्बन-सूत्र १७. अधोलोक के कष्टों के संवेदन का हेतु १८. संवेदन की तरतमता और उसका हेतु १९. हिंसा-फल का प्रतिपादन सर्वसम्मत या नहीं? २०. हिंसा का समर्थन करने वाले दार्शनिकों का मत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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