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मूल सूत्र तथा भाष्यगत विषय-विवरण
२९. रोग और आतंक से उत्पन्न कष्ट को सहन करने का
आलम्बन-सूत्र
• शरीर की विपरिणामधर्मिता का चिंतन ३०. सहज विरत के लिए साधना के मार्ग का कोई
निर्देश नहीं।
• शरीर की संधि को देखना देहातीत होना है ३१-३८. परिग्रह
३१. मूर्छा है परिग्रह ३२. परिग्रह महान् भय का हेतु
० लोकवृत्त को देखने का निर्देश ३३. पदार्थ अज्ञानी के लिए आसक्तिकारक ३४. परिग्रह-संयम का निर्देश ३५. ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की अनुस्यूति
. ब्रह्मचर्य के तीन अर्थ ३६. आत्मा ही बन्ध और प्रमोक्ष की कर्ता ३७. अपरिग्रहजनित परीषहों को जीवनपर्यन्त सहने का
निर्देश
• प्रमत्त की सिद्धि नहीं ३८. मौन अर्थात् अपरिग्रह के ज्ञान का अनुपालन ३९-६१. अपरिग्रह और काम-निर्वेद
३९. अपरिग्रह और अमूर्छा का तादात्म्य ४०. समता धर्म के अनुपालन का निर्देश
० समता का स्वरूप
• सामायिक के तीन प्रकार ४१. त्रिपदी की समन्वित आराधना के विषय में भगवान्
का कथन और शक्ति के गोपन का निषेध ४२. शक्ति का नानात्व : मनुष्यों का नानात्व ४३. भिक्षु और गृहस्थ के तीन-तीन लक्षण ४४. परिणामों की विचित्रता और शील के अनुपालन का
उपदेश • 'यतमान' पद का अर्थ-बोध • 'शील' शब्द के अनेक अर्थ • लोकसार अर्थात् अपरिग्रह की फलश्रुति-अकाम
और अझंझ। ४५. 'शक्ति का गोपन मत करो'--के विषय में शिष्य
का प्रश्न और भगवान् का 'सारपद' की प्राप्ति का
निर्देश ४६-४७. आत्मयुद्ध के सन्दर्भ में परिज्ञा और विवेक का
प्रतिपादन ४८-४९. धर्म-च्युत का जन्म-मरण
५०. संविद्धपथ-मुनि का चिंतन ५१. अहिंसा और संयम का मूल ५२. सुख अपना-अपना
५३. यश की कामना का निषेध ५४. साधक एकात्ममुख हो
० विदिशा क्या? ५५. वसुमान के लिए पाप अकरणीय
• सर्वसमन्वागतप्रज्ञा का निर्देश ५६. पापकर्म के अन्वेषण का निषेध ५७. सम्यक्त्व और संयम का अविनाभाव ५८. संयम की साधना के लिए कौन योग्य? कौन
अयोग्य ? ५९. ज्ञान और कर्म-शरीर का प्रकंपन ६०. समत्वदर्शी का आहार
६१. तीर्ण, मुक्त और विरत कौन ? ६२-६८. अव्यक्त का एकाकी विहार
६२. अव्यक्त मुनि के एकलविहार में होने वाले अपाय
० व्यक्त और अव्यक्त कौन ? ६३. एकाकी साधना का उपद्रव ६४. अव्यक्त अहंकार और मोह से मूढ ६५. अव्यक्त परीषह और उपसर्गों को सहना नहीं
जानता ६६. अव्यक्त अवस्था में एकाकी विहार के संकल्प का
निषेध ६७. महावीर का दर्शन
६८. साधक की इस दर्शन में तल्लीनता ६९-७०. ईपिथ
६९. ईर्यापथ की विधि
७०. ईर्यापथ का कर्तव्य ७१-७४. कर्म का बन्ध और विवेक
७१. गुणसमित व्यक्ति के कर्मबन्ध होता है या नहीं ?
० कर्मबन्ध की विचित्रता ७२. ऐहिकभवानुबन्धी कर्मबन्ध ७३-७४. आकुट्टीकृत कर्म का विलय ७५-८८. ब्रह्मचर्य
७५. इन्द्रियजय की साधना के छह उपाय ७६-७७. स्त्रीजन और मोह ७८-८४. सनिमित्त और अनिमित्त कामोदय के प्रकार और
उसकी चिकित्सा के उपाय ८५-८६. काममुक्ति के आलम्बन-सूत्र
० इन्द्रियसुख और दण्ड की व्याप्ति
• काम कलहकर और आसंगकर ८७. ब्रह्मचारी के कर्त्तव्य और अकर्तव्य का निर्देश ८८. काम-विरति की उपादेयता
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