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________________ अ० ५. लोकसार, उ० ४. ७७. एस से परमारामो, जाओ लोगम्मि इत्थीओ। सं० एष स परमारामः याः लोके स्त्रियः । इस जगत् में स्त्रियां परम सुख देने वाली हैं। सूत्र ७४-८४ भाष्यम् ७७ - लोके या स्त्रियः सन्ति स एष स्त्रीजन: परमं आरमयतीति परमारामः सुखहेतुत्वेन मोहं हैं जनयति । ७८. मुणिना एवं पवेदितं उम्बा हिज्जमाणे गामधम्मेहि [सं०] मुनिना खलु एतत् प्रवेदितं उबाध्यमानः ग्राम्यधर्म: - वासना से पीड़ित मुनि के लिए भगवान् ने यह उपदेश दिया ७४. अवि णिब्बलासए । सं० अपि निर्बलाशकः । वह निर्बल भोजन करे । ८०. अवि ओमोपरि कुज्जा । ० अपि अवनौद कुर्यात् । ऊनोदरिका करे –कम खाए । ८१. अवि उड्डाणं डाइज्जा | सं० -अपि ऊर्ध्वं स्थानं तिष्ठेत् । स्थान (घुटनों को ऊंचा और सिर को नीचा कर कायोत्सर्ग करें। ८२. अवि गामाणुगामं इज्जेज्जा । सं० अपि ग्रामानुग्रामं द्रवेत् । धामनुधाय बिहार करे। ८३. अवि आहारं वोच्वे । सं० अपि आहारं व्यवच्छिन्द्याद् । आहार का परिश्याग ( अनशन) करे। ८४. अवि च इत्योसु मणं । सं०-अपि त्यजेत् स्त्रीषु मनः । स्त्रियों के प्रति दौडने वाले मन का त्याग करे । लोक में जो स्त्रियां हैं, वे परमाराम सुख के हेतुभूत होकर मोह पैदा करने वाली हैं। १. तुलना - तिमिरहरा जई विट्ठी, जणस्स दीवेण णत्थि कादव्वं । तध सोक्खं सयमादा, विसया कि तत्थ कुब्वंति ॥ ( आचार्य कुम्बकुन्द --प्रवचनसार, ६७ ) Jain Education International भगवान् महावीर ने यह उपदेश दिया— काम वासना से भाष्यम् ७८८४ - मुनिना-भगवता महावीरेण एतत् प्रवेदितम् - ग्राम्यधर्मेः - कामाभिलाषैः उद्बाध्यमानो पीडित मुनि इन निम्न निर्दिष्ट उपायों का आलम्बन लेभिक्षुः एतान् निम्ननिर्दिष्टान् उपायान् आलम्बेत - २७१ For Private & Personal Use Only - परम सुख देने वाली www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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