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________________ मूलसूत्र तथा भाप्यगत विषय-विवरण १७४. पाप-कर्म कौन नहीं करता ? १७५. पाप-कर्म का अन्वेषण १७६-१७७. हिंसा-विवेक दूसरा अध्ययन १-३. आसक्ति १. गुण और मूलस्थान, विषय और लोभ की परस्परता २-३. विषयार्थी का परिताप और उसकी मनोदशा तथा प्रवृत्ति १०१. वनस्पतिकाय के शस्त्र ११०-११२. वनस्पतिकायिक जीव का जीवत्व और वेदना-बोध ११३. वनस्पति के जीवों की मनुष्य से तुलना __• चूर्णि तथा वृत्ति के विशेष तथ्य ११४-११७. हिंसा-विवेक | ११८-१२०. संसार ११८. त्रस जीवों के प्रकार ११९. त्रसकाय ही संसार १२०. मंद और अज्ञानी को भी त्रस-संसार ज्ञात १२१-१२२. सभी जीव सुखाकांक्षी। • 'सात' पद के एकार्थक • हिंसा-विरति के दो साधक तथ्य-सात इष्ट, असात अनिष्ट । ० प्राण, भूत, जीव और सत्त्व की व्याख्या १२३-१३६. त्रसकायिक जीवों की हिंसा १२३. त्रसकाय के लक्षण • जो त्रस्त होते हैं, वे त्रस । १३७-१३९. त्रसकायिक जीव का जीवत्व और वेदना-बोध १४०-१४४. हिंसा-विवेक • प्राणिवध का प्रयोजन। चूणि और वृत्ति में उल्लिखित प्राणिवध की परंपराएं। ० प्रतिशोध, प्रतिकार और आशंका से किया जाने वाला प्राणिवध । १४५-१४९. आत्म-तुला १४५. क्या वायुकाय की हिंसा का निवारण शक्य है ? १४६. हिंसा-विरति के आलंबन-सूत्र १४७. अध्यात्म-पद के विभिन्न अर्थ । • प्रिय और अप्रिय का संवेदन है अध्यात्म । • हिंसा-विरति का आलम्बन-सूत्र १४८. आत्म-तुला का अवबोध हिंसा-विरति का आलम्बन ४-२६. अशरण भावना और अप्रमाद ४. अल्प आयुष्य का विचय-सूत्र ० मरण के विषय में विज्ञान और आगम का अभिमत ५. अवस्था के तीन प्रकार । मध्यम अवस्था में इन्द्रिय हानि। ६. इन्द्रियों की मूढता कब? ७-८. अशरणानुप्रेक्षा सम्बन्धी विचय-सूत्र ९. अहोविहार के लिए प्रस्थान ११-१३. अप्रमाद का आलम्बन १३-१४. गुण और मूलस्थान में प्रवृत्त पुरुष हिंसा-रत .....१५. अर्थार्जन का मानसिक हेतु अथवा मनोवैज्ञानिक अह संबद्ध अभिप्रेरणा १६-१७. अशरण-अनुप्रेक्षा के आलम्बन-सूत्र १८. सन्निधि-सन्निचय क्यों ? १९. रोगों की उत्पत्ति उपभोग में बाधक २०-२१. अशरण-सूत्र २२. सुख-दुःख अपना-अपना २३. अहोविहार के लिए प्रथम तथा द्वितीय वय उपयुक्त २४. क्षण को जानो। क्षण क्या ? २५-२६. इन्द्रिय-प्रज्ञान के पूर्ण रहते अहोविहार के लिए प्रस्थान करने का निर्देश २७-३५. अरति की निवृत्ति २७. मेधावी अरति का निवर्तक २८. अरति-निवारण का फल २९. पुनः गृही कौन बनता है ? ३०. पुनः गृही बनने के दो कारण ३१. परिग्रह और काम की एकसूत्रता ३२. कामभोग में रक्त कौन ? ३३. मोह और विषयासक्ति का पोर्वापर्य ३४. न गार्हस्थ्य और न संयम ३५. विमुक्त कौन ? सूत्र १४९. वायुकाय की हिंसा के प्रसंगों के निवारण का निर्देश १५०-१६०. वायुकायिक जीवों की हिंसा १५२. वायुकाय के शस्त्र ० अचित्तवायु के पांच प्रकार ० विभिन्न ग्रन्थों में वायुकाय के शस्त्र तथा सचित्त अचित्त वायु का कथन । १६१-१६३. वायुकायिक जीव का जीवत्व और वेदना-बोध १६४-१६८. हिंसा-विवेक १६९-१७५. मुनि को संबोध १६९. वायुकाय की हिंसा कौन करते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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