SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ • आभामंडल का अस्तित्व • पृथ्वीजीव न सुनते हैं, न देखते हैं, न सूंघते हैं. न चलते हैं, फिर उनमें वेदना-बोध कैसे ? ० वेदना-बोध का पहला दृष्टांत २९-३०. वेदना-बोध के प्रतिपादक दो दृष्टांत ३१-३४. हिंसा-विवेक ३२. पृथ्वी-जीवों की हिंसा से विरति का मुख्य कारण ३३. प्रवृत्ति के तीन विकल्प-करना, कराना और अनुमोदन करना ३४. कौन मुनि परिज्ञातकर्मा ? ३५-३७. लक्ष्य के प्रति समर्पण ३५. अनगार कौन ? . सूक्ष्म जीवों की अहिंसा का आचरण कौन करता ३६. जिस श्रद्धा से अभिनिष्क्रमण करे, उसी को बनाए रखे। • विस्रोतसिका का परिहार । ... ३७. जो महापथ-अहिंसा के प्रति समर्पित हैं, वे ही - वीर हैं। ३८-५३. जलकायिक जीवों का अस्तित्व और अभयदान ३८. प्रत्यक्षज्ञानियों के प्रतिपादन से जलकायिक जीवों के अस्तित्व के स्वीकरण का कथन ० उन जीवों को भय उत्पन्न न करने का निर्देश ३९. अप्कायिक जीवों के अस्तित्व का अस्वीकार स्वयं के अस्तित्व का अस्वीकार • शिष्य का प्रश्न-अप्कायिक जीवों का अस्तित्व कैसे? ० नियुक्तिकार का सयुक्ति समाधान • जल-जीवत्व संसिद्धि में वैज्ञानिक अभिमत • जल-जीवत्व की संसिद्धि में १६ तत्त्व। ४०-५०. जलकायिक जीवों की हिंसा ५१-५३. जलकायिक जीव का जीवत्व और वेदना-बोध ५४-६५. हिंसा-विवेक ५४-५५. पानी की सजीवता को कोई दर्शन नहीं मानता। 'पानी में जीव' यह मान्यता है • अर्हत् शासन में पानी सचेतन है। ० वैज्ञानिकों का मत 'पानी में जीव' पर आधारित ५६-५७. जलकायिक जीवों के शस्त्र • नियुक्ति द्वारा निर्दिष्ट शस्त्र . . चूणि द्वारा निर्दिष्ट शस्त्र • महातप प्रपात का गर्म पानी सचेतन । ठंडा होने पर अचेतन । ५८. जल का प्रयोग अदत्तादान कैसे? आचारांगभाष्यम् ५९. अन्य दार्शनिकों की जलारम्भ विषयक विभिन्न मर्यादाएं। ६०-६१. अन्यतीथिकों की जलहिंसा की प्रवृत्ति और स्व शास्त्रों की सम्मति • निकरण शब्द के पर्याय ६२-६५. हिंसा-विवेक ६६-६८. अग्निकायिक जीवों का अस्तित्व ६६. अग्नि-जीवों के प्रत्यय के लिए नियुक्ति की युक्तियां ० वृत्ति तथा वैज्ञानिक मन्तव्य ० कर्मशास्त्रीय तथ्य ६७.० दीर्घलोक क्या ? कैसे? • दीर्घलोक का शस्त्र-अशस्त्र ६८. अग्निकायिक जीवों के द्रष्टा का स्वरूप ६९-८४. अग्निकायिक जीवों की हिंसा ६९. हिसा के दो कारण ७०. हिंसा न करने का संकल्प . मेधावी कौन ? ७१-७२. अनगार भी अग्नि-जीवों को हिंसा ७३. अग्निकायिक जीवों के शस्त्र ८२-८४. अग्निकायिक जीवों की हिंसा तथा उनका जीवत्व और वेदना-बोध ८५-८९. हिंसा-विवेक ८५. पृथ्वी के आश्रय में रहने वाले त्रस-स्थावर जीव । ८६-८९. अग्नि कर्म-समारंभ से मुक्त-अमुक्त । . षड्जीवनिकाय में तेजस्काय के पश्चात् वायुकाय का क्रम है। प्रस्तुत अध्ययन में तेजस्काय के बाद वनस्पतिकाय का वर्णन है । क्यों ? इसका समाधान ९०-९२. अनगार ० अहिंसा-व्रती का संकल्प ९१. हिंसा-विरति और सभी जीवों को अभय ९२. भिक्षु जो गृह-निर्माण करते हैं, वे अनगार नहीं ९३-९८. गृहत्यागी के वेष में गहवासी ९३. गुण और आवर्त्त ९४. गुण कहां होते हैं ? ९५. इन्द्रिय-विषय-जनित आसक्ति ० इन्द्रियों में चक्षु और श्रोत्र की प्रधानता • समाज की संघटना में आंख और कान की मुख्यता। ९६. इन्द्रिय विषय का लोक मूत्मिक ९७. अनाज्ञा में कौन ? ९८. गृहत्यागी भी गृहवासी ९९-१००. वनस्पतिकायिक जीवों की हिंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy