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________________ आचारांगमाष्यम् ३६. एस मरणा पमुच्चइ । सं०-एष मरणात् प्रमुच्यते। आत्मदर्शी मृत्यु से मुक्त हो जाता है। भाष्यम् ३६-एष निष्कर्मदर्शी मरणात् प्रमुच्यते। यह निष्कर्मदर्शी मनुष्य मृत्यु से मुक्त हो जाता है। मनुष्य मनुष्यः अमरत्वमभिलषति । तस्य साधनमस्ति निष्कर्म- अमरत्व चाहता है। उसका साधन है-निष्कर्मदर्शन। दर्शनम्। ३७. से हु दिट्ठपहे मुणी। सं०-स खलु दृष्टपथः मुनिः । उस आत्मदर्शी मुनि ने ही पथ को देखा है। भाष्यम ३७-येन अग्रं मूलञ्च विविक्तं, निष्कर्म- जिस ने अग्र और मूल का विवेक किया है तथा निष्कर्मदर्शन दर्शनञ्च उपलब्धं तेन मुनिना आश्रवस्य कर्मणाञ्च को प्राप्त किया है, उस मुनि ने आश्रव और कमों के क्षय के मार्ग को क्षयस्य दुःखमुक्तेर्वा पन्थाः दृष्टः । अथवा दुःखमुक्ति के मार्ग को देख लिया है। ३८. लोयंसी परमदंसो विवित्तजीवी उवसंते, समिते सहिते सया जए कालखी परिव्वए। सं०-लोके परमदर्शी विविक्तजीवी उपशान्तः समितः सहितः सदा यतः कालकाङ्क्षी परिव्रजेत् । जो लोक में परम को देखता है, वह विविक्त जीवन जीता है । वह उपशान्त, सम्यक् प्रवृत्त, सहिष्णु और सदा अप्रमत होकर जीवन के अन्तिम क्षण तक परिव्रजन करता है। भाष्यम ३५-ज्ञानी पुरुषः यया चर्यया परिव्रजति- ज्ञानी पुरुष जिस चर्या से जीवन यापन करता है, उसके सात जीवनं यापयति, सा सप्तसूत्र्या अत्र प्रदर्शिता-- सूत्र ये हैं(१) तादशः पुरुषः परमदर्शी—जीवस्य पारिणामिक- १. वैसा पुरुष परमदर्शी-जीव के परिणामिकभाव को देखने वाला भावदर्शी चैतन्यदर्शी वा भवति । अथवा चैतन्य को देखने वाला होता है। (२) स विविक्तजीवी-रागद्वेषमूक्तजीवी एकान्तजीवी २. वह विविक्तजीवी-राग द्वेष से मुक्त होकर जीने वाला अथवा वा भवति । यः परमदर्शी भवति स एव विविक्त- एकान्तजीवी होता है। जो परमदर्शी होता है वही विविक्तजीवी जीवी भवितुमर्हति । हो सकता है। (३) स उपशांत:-इन्द्रियमनसोरुपशमकारको भवति । ३. वह उपशान्त - इन्द्रिय और मन का उपशमन करने वाला होता है। (४) स समितः-लक्ष्य प्रति केन्द्रितो भवति । ४. वह समित-अपने लक्ष्य के प्रति केन्द्रित होता है। (५) स सहितः सहिष्णः भवति। ५. वह सहित-सहिष्णु होता है। (६) स सदा यतः-संयमवान् भवति । ६. वह सदा यत-संयमवान् होता है। (७) स कालकांक्षी-मृत्यु प्रति अनुद्विग्नो भवति, तटस्थ- ७. वह कालकांक्षी-मृत्यु के प्रति अनुद्विग्न होता है। वह तटस्थ भावेन तं पश्यति, न ततो भीतो भवति, न च तं भाव से मृत्यु को देखता है। वह न उससे भयभीत होता है और प्रति उत्सुको भवति । न उसके प्रति उत्सुक होता है। १. (क) आप्टे, समितः-Connected with, united with. (ख) आचारांग चूणि पृष्ठ ११४ : समिते-इरियाति समिते। (ग) आचारांग वृत्ति, पत्र १४६ : पञ्चभिः समितिभिः सम्यग् वा इतो-गतो मोक्षमार्गे समितः। २. (क) आप्टे, सहितः Borne, endured. (ख) आचारांग चूणि, पृष्ठ ११४ : सहिते--नाणादि सहितो, अहवा विवित्तजीवित्तण उवसमेण समितीहि य समयागतत्या सहितो। (ग) आचारांग वृत्ति, पत्र १४६ : सहितः-समन्वितो। चूणिवृत्तिकृतोऽर्थः अध्याहृतो दृश्यते । सहितस्य स्वतन्त्रोऽर्थः प्रासंगिकोऽस्ति । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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