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________________ आचारांगभाष्यम् भाष्यम् १४१-अस्ति कश्चित् पण्डितः। स कोई पंडित-कुशल चिकित्सक है। वह चिकित्सा की बात चिकित्सा प्रवदन्नस्ति । अहं कामचिकित्सां कर्तुं समर्थः कह कर घोषणा कर रहा है कि 'मैं काम-चिकित्सा करने में समर्थ हूं'। इति घोषणां कुर्वाणः अस्ति। चिकित्सा कामस्यापि चिकित्सा 'काम' की भी होती है और व्याधि की भी होती है । किन्तु स्यात् व्याधरपि च । किन्तु प्रकरणवशात् अत्र काम- यहां प्रकरणवश संभवतः काम-चिकित्सा ही विवक्षित है। चिकित्सा विवक्षिता संभाव्यते।' ___कामनिग्रहः चिकीर्षितोऽस्ति । स च उपायसाध्यः। काम का निग्रह करना इष्ट है। वह उपाय-साध्य है। उसके तदर्थमाध्यात्मिका उपायाः पूर्वसूत्रेषु प्रदर्शिताः । तन्त्र- लिए पूर्व सूत्रों में आध्यात्मिक उपाय निर्दिष्ट हैं। तांत्रिक साधनासाधनापद्धतौ वनौषधिसाध्या उपाया अपि लभ्यन्ते। पद्धति में काम-चिकित्सा के लिए वनौषधिसाध्य उपाय भी प्राप्त होते तदर्थं वनस्पतिजीवानां हिंसा अनिवार्या भवति इति हैं। उसके लिए वनस्पति के जीवों की हिंसा अनिवार्य होती है। इसका स्पष्टं निर्दिशति सूत्रकारः स्पष्ट निदर्शन करते हुए सूत्रकार कहते हैं१४२. से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता। सं०-स हन्ता छेत्ता भेत्ता लुम्पयिता विलुम्पयिता उद्घोता। वह चिकित्सा के लिए अनेक जीवों का हनन, छेदन, भेदन, लुंपन, विलुंपन और प्राण-वध करता है। भाष्यम १४२–स कामचिकित्सापण्डितः काम- वह काम-चिकित्सा में निपुण व्यक्ति काम-चिकित्सा के लिए चिकित्साय वनस्पत्यादिजीवानां हन्ता छेत्ता भेत्ता वनस्पति आदि जीवों का हनन, छेदन, भेदन, लुपन, विलंपन तथा लुम्पयिता विलुम्पयिता उद्घोता च भवति । उद्भवण करता है। लुम्पयिता-रोटयिता। लुम्पयिता का अर्थ है-तोड़ने वाला। उद्घोता-उत्पीडयिता।' उद्घोता का अर्थ है-उत्पीडन करने वाला। १४३. अकडं करिस्सामित्ति मण्णमाणे । सं०-अकृतं करिष्यामि इति मन्यमानः । 'पहले किसी ने नहीं किया, ऐसा मैं करूंगा'-यह मानता हुआ वह हिंसा में प्रवृत्त होता है। भाष्यम १४३---अकृतं. --यदपरेण कामचिकित्सनं न दूसरे व्यक्ति ने जैसी काम-चिकित्सा नहीं की मैं वैसी करूंगाकृतम, तदहं करिष्यामि इति मन्यमानः स जीवानां यह मानता हुआ वह व्यक्ति जीवों के हनन आदि क्रियाओं में प्रवृत्त हननादिक्रियासु प्रवर्तते । होता है। १४४. जस्स वि यणं करेइ । सं०-यस्यापि च करोति । वह जिसकी चिकित्सा करता है वह भी हिंसा में प्रवृत्त होता है । भायम १४४-स यस्यापि जीवहिंसासम्बद्धां काम- वह चिकित्सक जिस व्यक्ति की जीव-हिंसा से युक्त कामचिकित्सां करोति, सोऽपि हिंसायां प्रवृत्तो भवति। चिकित्सा करता है, वह भी हिंसा में प्रवृत्त होता है। १४५. अलं बालस्स संगणं । सं०-अलं बालस्य सङ्गेन । हिंसा में प्रवृत्त बाल के संग से क्या लाभ ? १.णिकारेण मुख्यत्वेन व्याधिचिकित्सापरो व्याख्यातोऽसौ आलापको व्याख्यातः, गौणरूपेण व्याधिचिकित्सापरोऽपि । आलापकः । वैकल्पिकरूपेण कामचिकित्सापरश्च । (वृत्ति, पत्र १२६) (चूणि, पृष्ठ ८७-८८) २. आप्टे, लुप्-to break | टीकाकारेण मुख्यत्वेन कामचिकित्सामधिकृत्यासो ३. वही,g-to injuren Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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