________________
१२८
आचारांगभाध्यम् १२४. से सोयति जुरति तिप्पति पिडति परितप्पति ।
सं०-स शोचति खिद्यते तेपते पीड्यते परितप्यते । कामकामी पुरुष शोक करता है, खिन्न होता है, कुपित होता है, आंसू बहाता है, पीड़ा और परिताप का अनुभव करता है ।
- बाब
भाष्यम् १२४-कामानां प्रकृतिमुपदर्य इदानीं कामनाओं की प्रकृति को बताकर अब सूत्रकार अपायविचयअपायविचयध्यानस्य प्रक्रियां दर्शयति सूत्रकारः । ध्यान की प्रक्रिया बता रहे हैं।
कामाः अतितान्ताः न भवन्ति तस्यामवस्थायामसौ जब कामनाओं की संपूर्ति नहीं होती, उस स्थिति में मनुष्य पुरुषः यत् करोति तस्य चित्रणम्----
क्या-क्या करता है, उसका चित्रण प्रस्तुत सूत्र में हैसोयति-शोचति-शोकाकुलः उपहृतमनःसंकल्पो वह पुरुष शोक करता है, शोकाकुल होता है अथवा उसका मन बा भवति ।
संकल्प-विकल्पों से भर जाता है। ___ जुरति' इष्टार्थस्यालाभे वियोगे वा खिद्यते क्रुध्यति वह इष्ट वस्तु की प्राप्ति न होने पर या उसका वियोग हो जाने वा।
पर खिन्न होता है, कुपित होता है। तिप्पति-तेपते---अश्रुविमोचनं करोति ।
वह आंसू बहाता है, रोता है । पिड्डुति -पीड्यते-- कामानुस्मृत्या पीडामनुभवति । वह कामभोगों की स्मृति कर पीड़ा का अनुभव करता है।
परितप्पति-परितप्यते-कामातुरः पुरुषः बाह्य वह कामातुर पुरुष बाहर और भीतर में कायिक, वाचिक और वातावरणे अन्तःकरणे च कायिकं वाचिक मानसिकं मानसिक-इन तीनों प्रकार के ताप का अनुभव करता है। क्रोध आदि त्रिविधमपि तापमनुभवति । क्रोधादिजनित: संतापः से उत्पन्न संताप कादाचित्क होता है, किन्तु कामजनित संताप दीर्घकादाचित्को भवति, किन्तु कामजनित: संतापः कालिक होता है। दीर्घकालिको भवति । शोकः, खेदः, क्रोधः, अश्रपातः, पीडा, परिताप:
शोक, खेद, क्रोध, अश्रुपात, पीड़ा और परिताप-ये कामाएते कामासक्ते: अपायाः सन्ति, अतः अपायहेतुनां सक्ति से उत्पन्न अपाय हैं, दोष हैं। इसलिए अपाय के हेतभूत इन कामानां परिहाराय उपायः अन्वेष्टव्यो भवति। कामभोगों के परिहार के लिए उपाय खोजना आवश्यक है। १२५. आयतचक्ख लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उडढं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ ।
सं० ---आयतचक्षुः लोकविपश्यी लोकस्य अधो भागं जानाति, ऊध्वं भागं जानाति, तिर्यञ्चं भागं जानाति । संयतचक्षु पुरुष लोकदर्शी होता है । वह लोक के अधोभाग को जानता है, ऊवभाग को जानता है और तिरछे भाग को जानता है ।
भाष्यम् १२५.--अस्मिन् सूत्रे अपायविचयध्यानस्य प्रस्तुत सूत्र में अपायविचयध्यान की प्रक्रिया प्रदर्शित है । काम प्रक्रिया प्रदर्शितास्ति । कामातिक्रमणस्य उपायोऽस्ति अर्थात् कामभोगों के अतिक्रमण का उपाय है-विपश्यना अथवा ज्ञाताविपश्यना ज्ञातृभावो वा । आयतचक्षुः-संयतचक्षुः भाव । आयतचक्षु का अर्थ है-संयतचक्षु, अनिमेषदृष्टि । लोक का अनिमेषदष्टिरिति यावत् । लोक:-शरीरम् । तस्य अर्थ है-शरीर और उसको देखने वाला लोकविपश्यो कहलाता है। १. प्राकृते खिद्-क्रुधोः 'जूर' इत्यादेशो भवति ।
ब्रह्माण्डसंज्ञके देहे स्थानानि स्युर्बहूनि च । (हेमचन्द्राचार्य, प्राकृत व्याकरणम् ८४१३२,१३५)
मयोक्तानि प्रधानानि ज्ञातव्यानीह शास्त्रके ॥३७॥ २. आचारांग चणि, पृष्ठ ८३: तस्स अवाया"....'जता य तेसि
(ख) तंत्रसंग्रह, भाग २, पृष्ठ ३०९, श्लोक २९ : कामाणं इहमेव दोसा।
ब्रह्माण्डलक्षणं सर्व, देहमध्ये व्यवस्थितम् । ३. (क) वही, पृष्ठ ८३ : उभयलोगअवायदंसी .....।
साकाराश्च विनश्यन्ति, निराकारो न नश्यति ॥ (ख) धवला, पुस्तक १३, खण्ड ५, भाग ४, सूत्र २६)
(ग) चरकसंहिता, शारीरस्थान ५॥३---पुरुषोऽयं लोकसंजितः गाथा ३९, पृष्ठ ७२।
इत्युवाच भगवान् पुनर्वसुरात्रेयः । यावन्तो हि लोके ४. आप्टे, आयत-Curbed, Restrained |
(मूर्तिमंतः) भावविशेषाः तावन्तः पुरुषे, यावन्तः पुरुषे ५. (क) शिवसंहिता, २।५,३७ : ब्रह्माण्डसंज्ञके देहे यथादेशं व्यवस्थितः ।
तावन्तो लोके इति । मेकशृङ्ग सुधारश्मिर्वहिरष्टकलायुतः॥५॥
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org