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________________ अ० २. लोकविचय, उ० २. सूत्र २८-३५ भाष्यम् ३१- अहोविहाराय समुत्थानं 'अपरिग्रहा 'हम अपरिग्रही होंगे'-इस संकल्प के साथ व्यक्ति अहोविहार भविष्यामः' इति संकल्पपूर्वकं भवति । किन्तु ये अपरि- --प्रव्रज्या के लिए तत्पर होते हैं, किंतु जो अपरिग्रह व्रत की सिद्धि ग्रहस्य सिद्धि न कुर्वन्ति ते लब्धान् कामान् अभिगाहन्ते नहीं करते, उसके रहस्य को आत्मसात् नहीं करते, वे प्राप्त कामों में -तत्र निमज्जन्ति, न च तेषां तीरे गन्तुं प्रयता भवन्ति । निमग्न हो जाते हैं । वे कामनाओं का पार पाने के लिए प्रयत्न नहीं प्रस्तुतसूत्रे परिग्रहकामयोरेकसूत्रता प्रदर्शिता । करते। प्रस्तुत सूत्र में परिग्रह और कामनाओं की एकसूत्रता पारस्परिकता दिखाई गई है। ३२. अणाणाए मुणिणो पडिलेहंति । सं•-अनाज्ञायां मुनयः प्रतिलिखन्ति । अनाज्ञा में वर्तमान मुनि विषयों की ओर देखते हैं। भाष्यम् ३२-ये मुनयः अनाज्ञायां वर्तन्ते-नात्मनि रमन्ते, न च अर्हतामुपदेशमनुसरन्ति, ते प्रतिलिखन्ति'- कामभोगे चित्तं निवेशयन्ति ।' या वर्तन्ते-नात्मनि मतों के उपदेश का अनुसरण है। २-ये मुनयः अनाजाया प्रतिलिखन्ति'- और नागों में चित्त को स्थापित जो मुनि अनाज्ञा में वर्तन करते हैं, आत्म-रमण नहीं करते और न अहंतों के उपदेश का अनुसरण करते हैं, वे प्रतिलेखन करते ३३. एत्थ मोहे पुणो पुणो सण्णा । सं०---अत्र मोहे पुनः पुनः सन्नाः । उन्हें विषयों के प्रति मोह हो जाता है और वे पुनः पुनः उनके दलदल में निमग्न रहते हैं। भाष्यम् ३३-येषां चित्तं कामभोगे निविष्टं भवति, जिनका चित्त कामभोगों में निविष्ट हो जाता है और जो बारये पुनः पुनः विषयान् स्मरन्ति, तेषां मोहः-विषया- बार विषयों का स्मरण करते हैं, उनमें विषयों के प्रति आसक्ति हो भिष्वङ्गः संजायते। मोहमूढास्ते तत्र सन्नाः-निमग्ना जाती है । वे मोह से मूढ होकर उन विषयों में डूब जाते हैं। भवन्ति। ट भवति, ३४. णो हव्वाए णो पाराए। सं०-नो अर्वाचे नो पाराय । वे न इस तीर पर आ सकते हैं और न उस पार जा सकते हैं। भाष्यम् ३४-हवं-गार्हस्थ्यम्, पारं-संयम इति चूर्णिकार ने 'हव्व' का अर्थ-गार्हस्थ्य और 'पार' का अर्थचणिकारः । तेषां मोहपङ्के निमग्नानां न गार्हस्थ्यं संयम किया है । मोह के दलदल में फंसे हुए उन मनुष्यों में न तो भवति न चानगारत्वम् । ते पंकावसन्नहस्तिवत् नार- गृहस्थता होती है और न अनगारता। वे दलदल में फंसे हुए हाथी की मागन्तुमर्हन्ति न च पारम् । भांति न इस तीर पर आ सकते हैं और न उस पार जा सकते हैं। ३५. विमुक्का ह ते जणा, जे जणा पारगामिणो। सं०-विमुक्ताः खलु ते जनाः, ये जनाः पारगामिनः । वे लोग विमुक्त होते हैं, जो लोग पारगामी होते हैं। भाष्यम् ३५-ये जनाः पारगामिनः सन्ति ते काम- जो लोग पारगामी होते हैं वे कामभोगों से विमुक्त अर्थात् भोगेभ्यो विमुक्ताः-सर्वतः अप्रमत्ताः भवन्ति । सर्वथा अप्रमत्त होते हैं। १. आप्टे, लिख्-to touch. २. आचारांग पूणि, पृष्ठ ५८ : पडिलेहणा कामभोगणिविट्ठचित्तसं। ३. तुलना-ध्यायतो विषयान् पंसः सङ्गस्तेषूपजायते । (गीता २१६२) ४. आधारांग चूणि, पृष्ठ ५९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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