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________________ की शिष्य रूपमें प्राप्ति हुई। इस प्रकार यश-कीर्ति, मान-प्रतिष्ठा एवं परिवारादिमें सर्वांगीण वृद्धिका योग प्राप्त हुआ। ७. गुरुका लाभ स्थानमेंसे भ्रमण सुख-सम्पत्ति-प्रतिष्ठादिकी प्राप्ति करवाता है। यह भ्रमण आपकी आयुके सत्रह, उनतीस, बयालीस और चौपन-पचपन वर्षमें हुआ। A. सत्रह वर्षकी आयुमें आपने संसार त्यागकर संन्यस्त जीवनका लाभ पाया। B. उनतीस वर्षकी आयुमें आपको देशु गाँवमेंसे शीलांकाचार्यजी की 'आचारांग सूत्र'की टीकाकी हस्तलिखित प्रतकी प्राप्ति हुई। इसके अध्ययनसे आपकी श्रद्धा संविज्ञमार्ग पर मज़बूत हुई। सच्चे साधु जीवनके आचारोंका ज्ञान हुआ। इसी वर्षमें श्री रामसुखजीसे ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन किया। अमृतसर में श्री अमरसिंहजी से आदर्श जैन धर्म प्रचारसे सम्बन्धित स्पष्ट चर्चा हुई। आपने अपना निर्णय स्पष्टरूपसे प्रथम ही जाहिरमें प्रगट किया। c. बयालीसवें वर्षमें श्री विनय-विजयजी, श्री कल्याण विजयजी, श्री सुमतिविजयजी और श्री मोतिविजयजी-चार शिष्यों की प्राप्ति हुई। D. चौपन-पचपनवें वर्ष में पट्टीमें धर्म प्रचार में आशातीत सफलता प्राप्त हुई। अनेक जैन-जैनेतरों को प्रतिबोधित किये। इस चातुर्मासमें 'चतुर्थ स्तुति निर्णय' भा-२की रचना की। जीरामें परमात्माके श्रीमंदिरजीके अंजनशालाकाप्रतिष्ठा महोत्सव और अमृतसर एवं होशियारपुर में मंदिरजीके प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न करवाये। ८. राहुका लाभ स्थान परसे भ्रमण भी सुख-संपत्ति-प्रतिष्ठादिमें लाभ-वृद्धि सूचक है । जिससे आपकी आयुके पचवीस और तैंतालीसवें वर्षमें हुआ-परिणामत: A. पचीसवें वर्षका वृत्तान्त-वर्णन पूर्वानुसार ज्ञातव्य है। B. तैंतालीसवें वर्षमें जीवलेवा ज्वरकी बिमारीके तत्काल उपचारसे स्वास्थ्य लाभ हुआ। अंबालामें श्री वीरविजयजी, श्री कान्तिविजयजी और श्री हंसविजयजी जैसे अत्यन्त सुयोग्यप्रतिभावान-आपके नामको रोशन करनेवाले तीन शिष्यों की प्राप्ति हुई। ९. केतुका लाभ स्थानसे भ्रमण अचानक उत्कृष्ट लाभकारी बनता है। यह भ्रमण आपकी आयुके पंद्रह-तैतीस-इक्यावन वें वर्षमें हुआ। परिणामत: A. पंद्रहवें वर्ष में आपकी कला-कुशलता-चित्रकारिता आकस्मिक ही प्रस्फुटित हुई। खेल खेलमें, बिना किसीसे सिखे, ही हूबबू चित्र बनानेका प्रारम्भ करके आपने अनेक चित्र बनाये जो पूर्व वर्णित है। लेकिन, अफसोस, इस अमूल्य निधिका उस समय किसीने गौर न किया। B. तैतीसवें वर्षमें धर्म प्रचार-प्रसारमें अभूतपूर्व-आशातीत सफलता यकायक ही प्राप्त हुई। पंजाबका प्रत्येक क्षेत्र आपके आगमन-दर्शन-स्वागतका इच्छुक बना। C. इक्यावनवें वर्ष में पूर्वोल्लिखित आचार्य पदकी प्राप्ति भी जीवनका सुखद अकस्मात ही था। १०. शनिका लाभ स्थानसे भ्रमण, ध्येय प्राप्ति, सफलता, विकास, सुखादिका अति उत्कृष्ट लाभ प्रदान करता है जो आपके जीवन में पैंतीस वर्षकी आयुमें हुआ; अतः जब आप शुद्ध धर्मके प्रचार के लिए कटिबद्ध हुए थे और दूं ढक वेशमें ही गुप्तरूपसे यह कार्य चल रहा था, जिसमें आपके गुप्त (119) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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