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________________ संदर्भ में चर्चा करके शास्त्रोक्त समाधान पाया। फल स्वरूप मूर्तिपूजा पर आपकी श्रद्धा स्थिर हो गई। विवेक चक्षुके उद्घाटनसे जीवनके सच्चे राहका निर्णय हो पाया। सत्यका निश्चय एवं स्वीकार करके उसके प्रचार और प्रसार करनेके लिए कटिबद्ध बने। दिल्ही पहुँचकर विश्नचंदजी चंपालालजी आदि साधुओंको अध्यापन करवाके आत्म विशुद्धि एवं सत्य और सनातन जैन धर्मकी प्ररूपणा की। उसीमें प्रवृत्त कराके विश्वासमें लिए। अतः उन सबका अमूल्य सहयोग आपको आजीवन मिलता रहा । D. उनचालीसवें वर्ष में फिर वही संयोग प्राप्त हुआ, अतएव आप सभीने ढूंढक-मिथ्या-पंथ छोड़कर शुद्ध श्रद्धान् युक्त शाश्वत धर्मकी संविज्ञ दीक्षाको अंगीकृत करके श्री बुद्धिविजयजी महाराजका शिष्यत्व स्वीकार करके आत्मारामजी से मुनिश्री आनन्द विजयजी म. बने और आत्मिक कल्याणके सच्चे मार्गके स्वीकारका परितोष पाया। E. आपकी इक्यावन सालकी आयुमें इसी शुभ योगमें जीवनमें सर्वोच्च कीर्तिकलशकी प्राप्ति हुई। इस साल पालीताना चातुर्मासकी पूर्णाहूति पर हिन्दुस्तानके सकल जैनसंघ के अग्रणी एकत्र हुए। सर्वने सर्व सम्मति से आपको तपागच्छान्तर्गत संविज्ञ शाखाके आद्याचार्यपदका ताज़ पहनकर इस पदको अलंकृत करने के लिए विनती की। आपकी संपूर्ण अनीच्छा होते हुए श्री श्री संघकी अत्यन्त आग्रहपूर्ण आज्ञारूप विनति को सम्मानित करते हुए आद्याचार्य पदका स्वीकार करके अत्युत्तम पंचपरमेष्ठि स्थित तृतीय स्थानारूढ हुए जो जीवनका उत्तमोत्तम लाभ था। ६. द्वितीय स्थान स्थित सूर्यकी प्रतियुतिमें गुरुका भ्रमण होनेसे भी जीवनमें महत्त्वपूर्ण सफलतायुक्त परिवर्तन करानेवाले प्रसंग उपस्थित होते है। तदनुसार आपकी आयुके तेरह पंचवीस-सहतीस उनचासवें वर्ष लाभदायी हुए हैं। यथा A. तेरह सालकी आयु में आप जीरा निवासी जोधेशाह जीके घर आये। यहाँ पर ही आपको जैन धर्मका परिचय हुआ जिससे आपके जीवनका आमूल परिवर्तन हुआ। आप हिंसक वीरताको त्यागकर अंतरंग शत्रुनाशक अहिंसक वीर सावज़ बनकरके स्व पर कल्याणकारी जीवन-यापन करनेको सौभाग्शाली बने। B. पंचवीस सालकी उम्र के प्रसंग आगे वर्णित किया जा चूका है। C. सड़तीस सालकी उम्र में आपकी अद्भूत कवित्व शक्तिका निखार आपकी रचना 'चतुर्विंशति जिन स्तवन में दृष्टव्य है, जिसमें भक्तिरसमें ओतप्रोत आपकी विशिष्ट संगीतज्ञताका भी परिचय प्राप्त होता है। D. उनचासवें वर्ष की उम्र में आपने सुरतमें चातुर्मास किया और हुक्म मुनि नामक साधुके 'अध्यात्म सार 'नामक ग्रंथकी शास्त्रीय सत्यताको ललकारा और प्रश्नोत्तरके रूपमें भारतवर्ष के सभी जैन जैनेतर विद्वानोंके परामर्श द्वारा इसे 'मिथ्या' ठहराया। इससे आपकी अगम्य कीर्ति प्रकाशमें आयी। इस चातुर्मासमें अनेक प्रभावात्मक कार्य अनुष्ठानादि हुए। इसके अतिरिक्त ढूंढक साधु रायचंदजी ⇒ श्री राजवियजी म. सुरतके कस्तुरलाल श्री कुंवरविजयजी म. पाटनके श्री सम्पत विजयजी लहरुभाई , Jain Education International 118 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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