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चतुर्थ
(सुख)
पंचम (तनय)
षष्ठम् (रीपु)
सप्तम् (जाया)
अष्टम् (आयु)
जलसेवी, उद्यानादिमें घुमनेसे, | स्त्रियोंके गुणवान, मनो
जलाश्रयी सुख एवं शनिसे वावादिमें स्नानसे, मित्रोंकी वांछित, मिष्ट-स्वादिष्ट उत्पन्न सुंदर वस्त्रादि पदार्थ, सेवा, उत्तमजनोंके संगसे फलादि पदार्थ और उत्साह काली वस्तु और धनादि अधिक सुखी।
वर्धक बातोंसे सुखी होता है। सुखका भोगी होता है। पाप, बुद्धि, कुरूप, कायर, स्थिरता युक्त, गंभीर
स्त्री-प्रसंगसे सुखी, प्रताप और तेजहीन, निर्दयी, चेष्टावाले, सत्यभाषी,
लालवर्णी, रोगी, कुरूप, प्रेमविहीन, ऐसे पुत्रोंवाला प्रसिद्ध पुण्यवान, यशस्वी, मजाकीय स्वभावी, होता है।
कष्ट सहनेवाले पुत्रोंवाला स्त्रीयुक्त पुत्रवाला होता है। धन-घर संबंधी, कारण बलवान राजा, क्षेत्रपाल
बच्चे, स्त्री, वस्त्रके कारण और बार बार साधु और बड़े पुरुषोंसे,
से अन्यकी संपत्ति निमित्त पुरुषोंके संगसे मित्रोंसे
वाव-तालाबादि से, पानीसे शत्रुता प्राप्त होती है। वैर प्राप्त करता है।
भय प्राप्त होता है। कपटी-नीच-निर्लज्ज, दुष्ट स्वभावी, देव-गुरुको
विचारयुक्त, बुद्धिवान, लालची, कूर, दुष्ट स्वभावी, खुश करनेवाली, धर्मध्वजा रूप, स्वधर्म, कुशल,अविनयी, क्लेश करनेवाली पत्नी क्षमावान स्त्रीको प्राप्त
कजियाखोर, खराब पुत्रवाली प्राप्त करता हैं। करें।
स्त्री पाता है। विद्यावान, गुणवान, मान घरकी आगसे, अनेक व्रण संग्रहणी रोग, पित्तकाज्वर, चाहक, कामी, शूरवीर, और विकारोंसे, वायु
दुःख, खून विकृतिसे, विशाल वक्षःस्थल, विकारसे, मेहनतसे
पानी से, या शस्त्र से शास्त्रार्थ ज्ञाता, कलामें परदेशमें मृत्यु पाता है। मृत्यु पाता है। चतुर होता है। पापी आत्मा, प्रतापी, अच्छा,धर्मी, वाव
विविध धर्म कर्ता, अधर्म करें लेकिन बादमें उद्यानादिमें प्रीतिवान,
सत्पुरुष सेवा और तीर्थाटन दुःखी होनेसे खानदानोंका देव-गुरुभक्त होता है।
से धनवान और सुखी आश्रय कर पक्षका सहायक
होता है। बड़ा प्रतापी, श्रेष्ठ
पाखंडी, लोभी, अविश्वासी, निज कुलमें गुरुदृष्ट कार्यकर्ता, दुष्टजनोंकी लोक विरुद्ध चलनेवाला, धर्मकर्ता, कीर्तिवान, स्थिर संपत्ति अनुसार चलनेवाला और ठग होता है।
बुद्धि, आदर सत्कारमें निर्दयी, अधर्मी होता है।
तत्पर होता है। यात्रा, परदेशगमन, कुकर्म, पराक्रम, धर्म,
मित्रोंसे, राजाके सन्मानसे, राजसेवा, व्ययानुसार अधिक विद्याके प्रभावसे लाभ,
विचित्र (मश्करे) वाक्य लाभ प्राप्त करता है।
सज्जनोंका संग प्राप्त करता है | बोलने से या नम्रतासे पाप नाशके लिए सिद्ध, देव, गुरु, तपस्वी
अनेक प्रकारसे लाभधन का व्यय, स्वजाति
आदि और दुष्ट पुत्र एवं प्रीतको रखनेवाला
खानपानादिमें तथा खेती करनेवाला,
विवादमें व्यय करता है। निंदित होता है।
नवम (भाग्य-धर्म)
दसम् (कर्म)
ग्यारह (लाभ)
बारह (व्यय)
ग्रह :- राशिकी भाँति आकाशमें पृथ्वीकी तरह बड़े आकारके पिंड़को ही ग्रह कहा जाता है। वे राशिचक्रके मार्गमें भ्रमण करनेवाले होते हैं। राशि एक ही जगह रहनेसे स्थिर और ग्रह भ्रमणशील होनेसे अस्थिर माने जाते हैं। ज्योतिष शास्त्रानुसार सूर्य-चंद्रादि बारह ग्रह माने गये हैं, जो जातकके जीवनमें निज कर्मानुसार घटित होनेवाली घटनाओंकी और अपने गुणधर्म और गगन परिभ्रमणानुसार अंगूलि-निर्देश करते हैं।
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