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________________ शैली रूप रंगोंसे सजाता है । उत्कृष्ट साहित्य सर्जक श्री आत्मानंदजी म.सा. ने भी इसी परम्पराका यथोचित - यथाशक्य परिपालनका यथास्थित यथावसर निर्वाह किया है । कृतियोंमे ऐतिहासिकता:- उबीसवीं शताब्दीका इतिहास राजनैतिक पराधीनता के स्वीकार और लुप्तप्रायः हो रहीं शुद्ध सात्विक-सांसारिक, सामाजिक एवं धार्मिक परंपराओंके कारण घोर पतनकी करुण कहानी मात्र बन गया था | विश्व विख्यात भारतीय सभ्यताको वहशियाना, साहित्यको पागलोंका प्रलाप एवं सर्वविध निपुण पूर्वजोंकों old fools 'मूर्ख' के नामसे पुकारा जाने लगा था I पाश्चात्य सभ्यता और पाश्चात्य धार्मिक विचारधाराके निरंतर आक्रमण, भारतीय संस्कृतिकी जहाँको प्रतिक्षण खोखला कर रहे थे नूतन शिक्षण प्रणालिके परिणाम स्वरूप युवावर्ग स्वत्वको विस्मृत करके विचार वाणी-वर्तन-वेश और खान-पान में पाश्चात्योंकी नकल करनेमें गौरव समझ रहे थे । यदि ऐसे वातावरणमें उस समय श्री आत्मानंदजी म. सदृश महापुरुष जन्म न लेतें तो आज इस भारतीय सभ्यता और संस्कृतिकी कैसी दृर्दशा होती ! शायद हमारे लिए यह जानना असंभव हो जाता कि किसी एक समयमें भारत आध्यात्मिकादि अनेक श्रेष्ठ विद्याओंमें विश्वका गुरु । सर्वोपरि रहा है । “ अतीतका इतिहास वर्तमान प्रगतिका मुख्य साधन बन सकता है ।" इस वास्तविकता पर गौर करते हुए, आज इस आसन्न अतीतके इतिवृत्तों ऐतिहासिक तथ्योंसे हमें बोध ग्रहण करना है, प्रेरणाके पीयूषपान करने हैं और साम्म्रतिक-कालमें तरोताजा स्फूर्ति प्राप्त करनी है जिससे तत्कालीन जो सर्वनाशका बीज, अपना घटाटोप - वृक्ष स्वरूप बनाकर वर्तमानमें भारतीय संस्कृतिको नष्ट-भ्रष्ट करनेमें अपनी समस्त शक्ति आज़मा रहा है, उसका मुकाबला करके भारतीय सभ्यताका और संस्कृतिका मस्तिष्क पुनः गौरवान्वित बनाकर उन्नत कर सकें । अतः यह बात निश्चित ही है कि अतीतका इतिहासका अध्ययन वर्तमानका पथ प्रदर्शक बन सकता है, जिसका निर्माण महापुरुषों, महाननेताओं, महान धर्मगुरुओं एवं अन्य विशिष्ट व्यक्तियोंके चरित्र पर आधारित होता है । श्री आत्मानंदजी म. का जीवन भी इतिहासका एक स्वर्णिम पृष्ठ बन चूका है। उन्होंने ऐतिहासिक दृष्टिसे जो योगदान दिया है, वह निःशंक अपना अनूठा महत्व स्थापित करता है जिससे दो महत्वपूर्ण दृष्टिकोण दृश्यमान होते हैं । (१) अतीतके एतिह्य इतिवृत्तों का उद्घाटन और ( २ ) स्वयंके व्यवहार तथा उनके पारिवेशिक वृत्तांतोंसे निष्यत्र तत्कालिन इतिहास सर्जन । यहाँ हम उन्होंने अपनी कृतियोंमें जिन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विषयों, वर्णनों एवं वृत्तातोंका निरूपण किया है, उस पर दृष्टिक्षेप करेंगें, जिससे शैक्षणिक, साहित्यिक, दार्शनिक, धार्मिक, सामाजिक, राजकियादि सभी क्षेत्रोंके अंतर्गत ऐतिहासिक प्ररूपणाओंका परिचय प्राप्त हो सके । शैक्षणिक और साहित्यिक-यदि साहित्य शिक्षणका अंग है, तो शिक्षण, समाजका हृदय कहा जा सकता है । बिना शिक्षाके तो किसी भी समाजका अपना चैतन्यमय अस्तित्व बनाये रखना नामुमकिन है । उन्होंने पूर्वाचार्योंके रचित उन शिक्षा प्रदाता ग्रन्थोंको हिन्दीमें अवतरित किया । आत्माके अहितकारी आर्त-रौद्र एवं उपकारी- हितकारी धर्म-शुक्ल - इस ध्यान चतुष्कका परिचय श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण विरचित ध्यान शतक नामक संस्कृत ग्रन्थ आधारित दिया है, जिससे पाठक वर्गको इनके लक्षण स्वरूप परिणामादिका अभिज्ञान हो सके और आत्मिक अहितकारी कुध्यान-द्वयसे निवारण करके आत्मरक्षापूर्वक हितकारी सुध्यान- शुभध्यान-द्वयका आराधन करके आत्म कल्याण कर सकें । इसी 'बृहत् नवतत्त्व संग्रह' ग्रन्थमें आगमोंके साक्षिपाठ देते हुए आपने अनेक जीवनोपयोगी सैद्धान्तिक तत्त्वोंको वर्गीकृत करके अपनी अनूठी 'कोष्टक' (तालिका) शैलीमें (Table type) इस प्रकार निरूपित किया है, कि अध्येताको उन्हें हृदयगत करनेमें सरलता बनी रहें 'तत्त्व निर्णय प्रासाद' ग्रन्थमें आपने श्री हरिभद्र सुरीश्वरजी म.सा. श्री हेमचंद्राचार्यजी म.सा., श्री वर्धमान सूरि म. आदिकी रचनाओं पर सरल हिन्दी भाषामें बालावबोध एवं विवेचन प्रस्तुत किये हैं; तो Jain Education International 15 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002550
Book TitleVijayanandji ke Vangmay ka Vihangavalokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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