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________________ कल्पद्रुम, ध्यानमाला आदिका बालावबोध किया, वैसे ही न्यायांभोनिधि श्री आत्मानंदजी म.सा.ने भी अपने ग्रन्थराज 'तत्व निर्णय प्रासाद'में महादेव स्तोत्र, अयोग व्यवच्छेद, लोकतत्व निर्णयादि ग्रन्थोंका बालावबोध तथा 'ध्यानशतक' ग्रन्थका पद्यबद्ध विवेचन या 'आचार दिनकर' ग्रन्थाधारित गृहस्थ जीवनके सोलह संस्कारोंका वर्णन दिया है । (३) १४४० ग्रन्थोंके रचयिता, महान दार्शनिक श्री हरिभद्र सुरीश्वरजीम.सा.के गुणानुराग प्रदर्शित करनेवाले उदात्त निर्घोष-“पक्षपातो न मे वीरो, न द्वेषः कपिलादिषु; युक्तिमद्वचनं यस्य कार्यः परिग्रह: ११७ का प्रतिसाद हमें उनकी रचनाओंमें प्राप्त होता है । अपने 'ईसाई मत समीक्षा ग्रन्थमें आपने फरमाया है, “कोई पुरुष या स्त्री किसीभी जातिवाला क्यों न हों, जो इच्छा निरोधपूर्वक शीलका पालन करता है वही श्रेष्ठ पुरुष गिना जाता है । ऐसे व्यक्ति बहुत मतोंमें और बहुत जातियोंमें अब भी मिल सकते हैं - क्या विरोध है ?१८ (४) 'द्वादशार नयचक्र' नामक अद्वितीय न्यायग्रन्थ कर्ता श्री मल्लवादी सुरीश्वरजी म. (विक्रमकी पांचवी शती), प्रमाणनयतत्व लोकालंकारनामक प्रसिद्ध न्यायग्रन्थ रचयिता श्री वादिदेव सुरीश्वरजी म.(वि.स.११४३ से १२२६), न्याय विषयक शताधिक कृतिकर्ता महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी म.सा.आदि प्राज्ञ पुरुषों सदृश न्यायशास्त्राधारित अकाट्य-युक्तियुक्त तार्किक शैली अर्थात् खंडनात्मक प्रतिपादनात्मक और समन्वयात्मक शैलीमें “तत्व निर्णय प्रासाद", "अज्ञान तिमिर भास्कर”, “जैन तत्वादर्श", “सम्यक्त्व शल्योद्धार” आदि साहित्य कृतियाँ निर्माण करके अनेक प्रकारसे जैनधर्म-दर्शन एवं साहित्यकी सर्वोत्कृष्टता सिद्ध की है । (५) “हीरप्रश्न (प्रश्नोत्तर समुच्चय)"-संक. -उपा.श्री कीर्ति विजयजी गणी,“सेनप्रश्न",श्री सकलचंद्रजी म. कृत "गौतम पृच्छा आदि अनेक ग्रन्थोंसे प्रेरणा ग्रहण करते हुए आपने भी ऐसी ही प्रश्नोत्तर शैलीमें,-सामाजिक, भौगोलिक, खगोलिक ऐतिहासिक एवं जीवन व्यवहारके समसामायिक प्रश्नोंको दृष्टिपथ पर रखते हुए जैन सिद्धान्तों, रहस्यों, आगमिक प्ररूपणाओंको समाहित करनेवाली जैनधर्म विषयक प्रश्नोत्तर", "चिकागो प्रश्नोत्तर"आदि ग्रंथरचना करके सुंदर मार्गदर्शन प्रस्तुत किया है । (६) पं.श्री जिनविजयजी गणि, अध्यात्म योगी श्री आनंदघनजी म.सा., कविवर श्री चिदानंदजी म.सा.आदिकी परमात्म भक्तिमें झूमती-लहराती, सर्वस्व समर्पण भाव भरपूर, भगवद् भक्ति युक्त वर्तमान चौबीसीके जिनेश्वरीके गुणगान, कीर्तन, तीर्थंकरोंके आत्मिक वैभवके साथ याचक, दास्य या सेवक भाव रूप संपूर्ण समर्पित आस्थायुक्त धार्मिकता एवं दार्शनिकताको संगुंफित करनेवाली स्तवन चौबीसी" रचनाकी छायातुल्य, वैराग्य और शांतरसमें पगी, विविध राग-रागिणिमें प्रवाहित विभिन्न भावधारा युक्त “जिन स्तवन चौबीसी” की रचना की । (७) विक्रमकी उन्नीसवीं शतीसे जैनकाव्य साहित्यमें “पूजाकाव्य भी अपना अनूठा प्रभाव फैला रहा था, जिनको · भाविक भक्तगण समुदायमें या वैयक्तिक रूपमें विविध राग और ढाल या चालोमें गाते गाते जिनभक्तिमें तदाकार हो जाते हैं । श्री वीरविजयजीम., श्री सकलचंद्रजीम., श्री पद्मविजयजीम., श्री रूपविजयजीम., श्री गंभीरविजयजीम. आदिने विविध विषयोंको और तीर्थों-चरित्रों आदिको आलेखित करनेवाली पूजाकाव्य कृतियाँ गुजरातीमें की थीं । हिन्दी भाषामें उसकी शून्यता निवारण हेतु उन्हीं रचनाओंसे प्रेरणा ग्रहण करके पूजा-काव्योंकी-स्नात्रपूजा, अष्टप्रकारीपूजा, नवपद पूजा, बीसस्थानक पूजादिकी रचना विविध छंद-ढाल-देशी और राग-रागिणियोंमें की । (८) श्री चिदानंदजीम. आदि अनेक जैन जैनेतर कविरत्नोंकी “बावनी काव्य" प्रकारकी रचनाओंके समकक्ष आपने भी “उपदेश बावनी' काव्य रचना करके तत्वत्रयी-देव, गुरु, धर्मतत्व-के स्वरूपालेखन एवं चेतन-आत्माके लिए उपदेशात्मक प्रबोध वचनोंकी प्ररूपणाकी हैं । (९) महान तपस्वी और महाकवीश्वर श्री उदयरत्नवि.म.सा.आदिकी “बारहमासा" प्रकारकी रचनाओंसे प्रेरित होकर श्री आत्मानंदजी म.सा.ने श्री नेमिनाथ जिनस्तवन रूप “बारहमासा' काव्यकी रचना की तो उपाध्याय श्री विनय विजयजीम.सा.की “सोलह भावना" वर्णित “शांतसुधारस". भावना प्रबन्ध सदृश आचार्य देवने सरल हिन्दीमें सुंदर काव्य शैलीमें “बारह भावना"ओंका सज्झायकाव्य रूपमें आलेखन किया है ।। __ अखिल वाङ्मयके अवलोकनसे हमारे दृष्टिपथ पर उभरनेवाले दृश्यानुसार सकल जैन साहित्य सृजनके प्रायः परम्परित तथ्यालेखन द्वारा फनकार सिद्धान्तों एवं रहस्योंको अपनी मौलिक प्रतिभाके बल पर विविध (14) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002550
Book TitleVijayanandji ke Vangmay ka Vihangavalokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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