SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हमें श्रीआत्मानंदजीम.के 'जैन तत्त्वादर्श' ग्रन्थके द्वितीय परिच्छेदमें प्राप्त होता है । साहित्यमनीषी श्रीहरिभद्र सुरीश्वजी म.सा.का वैविध्यपूर्ण-अजीबोगरीब-प्रातिभ पांडित्यपूर्ण-विलक्षण वाङ्मयके सामने श्रीआत्मानंदजीका साहित्य परिमाणापेक्षया बाल सदृश भासित होता है, लेकिन, शेरका बच्चा शेर ही होता है-वैसे ही गुण समृद्धिमें श्री आत्मानंदजी म.सा., श्री हरिभद्र सुरीश्वरजी म.सा.के अनुज या अपत्यके रूपमें हमें प्रत्यक्ष होते हैं । महामहोपाध्य श्रीमद् यशोविजयजी म.सा. और संविज्ञ आद्याचार्य श्रीमद् आत्मानंदजी म.सा.:--- परिचय-इतिहासके स्वर्णिम पृष्ठोंसे बहता कलकल निनाद और हमारे कर्णपटलको आकृष्ट करनेवाले ये मधुर-मंजुल स्वरगान है महामहोपाधाय श्रीमद् यशोविजयजी म.सा.के, वाग्देवी श्रीसरस्वतीकी श्रेष्ठ प्रसादी और शुद्ध साधुता अर्थात् ज्ञान और क्रियाके सुभग समन्वयी संगीतका । सामान्यतः विशेषणसे विशेष्य (व्यक्ति) की विशिष्टताका उभार होता है, लेकिन, श्रीयशोविजयजी म.के लिए जैसे विशेष्यसे विशेषणकी विलक्षणता छलकती है । विशेषण है 'उपाध्यायजी'-विशेष्य है श्री यशोविजयजी' । 'उपाध्यायजी' शब्दोच्चारसे विद्वज्जगतमें श्रीयशोविजयजी म.की स्मृति उठती है; मानो विशेषण विशेष्यका पर्याय-सा बन गया है । ऐसे विरल विभूति: जिनशासनके अनन्य प्रभावक और आत्महित साधक; नम्रता और लघुलावण्यसे शोभित ओजस्वी व्यक्तित्वधारीः ज्ञानभक्त और गुरुभक्त; षड्दर्शनवेत्ता-महान दार्शनिक; मैथिल-तार्किक श्रीउदयन और श्रीगंगेशके द्वारा अवतारित नव्यन्यायकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्लेषणात्मक विचारधाराको जैन दर्शनमें सजानेवालेजैन नव्यन्यायके पिता समान आद्यविद्वान; विद्याधाम काशीकी कीर्ति-पताकाकी सुरक्षा हेतु स्याद्वाद-अनेकान्तवादका कवच धारण करके प्रखर विद्वान संन्यासीके पड़कारको झेलकर उसे वादमें पराजित करते हुए, जैन दर्शन विरोधी ब्राह्मण विद्वद् पंडितवों द्वारा 'न्याय विशारद' बिरुद प्रापक श्रेष्ठ श्रमण; निश्चयवादी श्री बनारसीदासजीको अकाट्य तर्कयुक्तियोंसे हराकर, व्यवहार नयकी स्थापना करके श्री आग्रा संघसे उनके सिद्धान्तका बहिष्कार करवानेवाले अनुपम तार्किक शिरोमणि न्यायाचार्य; महोबतखानादि अहमदाबादके सर्वजनोंको अवधान प्रयोगोंसे प्रसन्नताके पारावारमें निमज्जन करानेवाले सहस्त्रावधानी-असाधारण तेजस्वी धीमान; ज्ञानप्रवाहको अमरत्व प्रदान करनेके लक्ष्यसे अल्पज्ञ-विशेषज्ञ, या साक्षर-निरक्षर, साधु या संसारीके ज्ञानार्जनकी सुलभता हेतु संस्कृत-प्राकृत, गुजराती, हिन्दी आदि विविध भाषाओमें आगम-तत्त्वज्ञान-अनेकांत, तर्क-न्याय, साहित्यअलंकार-छंद, योग-अध्यात्म, चारित्र-आचार-उपदेशादि विभिन्न विषयोंको खंडनात्मक-मंडनात्मक-समन्वयात्मक शैलीमें गद्य-पद्य-संवादादि विलक्षण वाङ्मय रूप सैंकड़ो ग्रन्थोंके सृजनहार-जिनमें दो लक्ष श्लोक प्रमाण केवल न्याय विषयक सौ ग्रन्थ थे-और जिनको अहमदाबादमें श्री विजयप्रभ सुरीश्वरजी द्वारा वि.सं. १७१८में उपाध्याय पद प्रदान किया गया, ऐसे महमहोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी म.सा.ने सत्रहवींशतीकी निशा एवं अठारहवीं शतीकी उषाको अपनी अनूठी आभा और ज्ञानालोकसे अलंकृत किया था । देवी सरस्वतीके उस नर अवतारके वचन टंकशाली और उनके प्रमाण-वाक्य साक्षात् आगमावतार ! उन्हें आधुनिक युगके अनेक विषयोंके Ph.D. अथवा कलिकालके श्रुतकेवली कहें तो भी कोई अतिशयोक्ति न होगी । जीवनतथ्यः-उनके गुणानुवादको प्रकाशित करनेवाली उनकी यशापूरित अक्षरदेह जाज्वल्यमान रूपमें विद्यमान है । हालाकि उनका स्थूल जीवनवृत्त प्रामाणिक रूपसे प्राप्त करानेवाले माध्यमोंकी अत्यल्पता अखरती है, फिर भी उनके समकालीन श्रीकान्तिविजयजी म.के काव्य-'सुजस वेलिभास'-प्रमुख रूपसे सहायक बन सकता है; तो थोड़ा-बहुत आधार महाराजा कर्णदेवका वि.सं.१७४० के ताम्रपत्रसे. मिल जाता है और शेष अभावको पूर्णता बक्षती है कुछ अनुश्रुतियाँ । वैसे तो उनके साहित्य-सृजन-प्रवाहकी भी पूर्ण रूपेण प्राप्ति अद्यावधि नहीं हो सकी है । जितनी उपलब्ध है, वह भी अत्यल्प है । उनके अनुपलब्ध अमूल्य साहित्यके लिए संशोधन हो रहा है जो प्रशंसनीय एवं अनुमोदनीय है । ताम्रपत्रके आधार पर हम कह सकते हैं कि इनका जन्म गुजरातके पाटण शहरके पास छोटे'कनोडा'-ग्राममें वि.सं.१६८०में हुआ था ।१६ 'भास के आधारसे इस विषयमें व्यवस्थित-विशिष्ट जानकारी (127) Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002550
Book TitleVijayanandji ke Vangmay ka Vihangavalokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy