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________________ तम्हा केवलकमलाकलिओ निअमायतायउवरोहा। चिट्ठइ चिरं घरे च्चिअ स कुमारो भावचारित्तो।। 137 || अर्थ : इसलिए केवलज्ञानरूपी लक्ष्मी से सुशोभित वह राजकुमार (कूर्मापुत्र) अपने माता-पिता के आग्रह से भावचारित्र का (पालन करता हुआ) बहुत समय तक घर पर ही रहता है। कुम्मापुत्तसरिच्छो को पुत्तो मायतायपयभत्तो। जो केवली वि सघरे ठिओ चिरं तयणुकंपाए ।। 13811 अर्थ : माता-पिता के चरणों की भक्ति करने वाले कूर्मापुत्र के समान कौन पुत्र (होगा) ? जो तप की अनुकम्पा से केवलज्ञानी होकर भी दीर्घकाल तक अपने घर में ही रहा हो। कुम्मापुत्ता अन्नो को धन्नो जो समायतायाणं । बोहत्थं नाणी वि हु घरे ठिओऽनायवित्तीए।। 139 ।। अर्थ : कूर्मापुत्र के (अतिरिक्त) अन्य कौन धन्य है? जो अपने माता-पिता की अज्ञातवृत्ति से (उन्हें) बोध (प्रतिबुद्ध) कराने के लिए केवलज्ञानी होने पर भी घर में रहा हो। गिहवाससंठिअस्स वि कुम्मापुत्तस्स जं समुप्पन्न । केवलनाणमणंतं तं पूण भावस्स दुल्ललि।। 140।। अर्थ : गृहस्थावस्था में रहते हुए भी कूर्मापुत्र को, जो अनंत केवलज्ञान उत्पन्न हुआ, वास्तव में वह भाव की शुद्धता का प्रभाव था। भावेण भरहचक्की* तारिससुद्धतमज्झमल्लीणो। आयंसघरनिविट्ठो गिही वि सो केवली जाओ।। 1411 अर्थ : अन्तःपुर में रहने वाले (पुरुषों) के समान आदर्श घर में रहने वाले वे भरत चक्रवर्ती शुद्ध भाव के द्वारा गृहस्थावस्था में रहते हुए भी केवलज्ञानी हो गए। वंसग्गिसमारूढो मुणिपवरे के वि दटुं विहरन्ते। गिहिवेसइलापुत्तो* भावेणं केवली जाओ।। 142।। सिरिकुम्मापुत्तचरिअं 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002548
Book TitleSirikummaputtachariyam
Original Sutra AuthorAnanthans
AuthorJinendra Jain
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2004
Total Pages110
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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