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आराधना प्रकरण अनुवाद : पांचों इन्द्रियों का दमन करने में प्रवीण, कामदेव (विषय-वासनाओं) के
दर्प रूपी बाणों के प्रसार को जीतने वाले (एवं) ब्रह्मचर्य को धारण करने वाले (ऐसे) वे मुनि मेरे शरणभूत हों।
जे पंचसमिइसमिआ' पंचमहव्वयभरुव्वहणवसहा।
पंचमगइ-अणुरत्ता, ते मुणिणो हुन्तु मे सरणं॥41॥ अन्वय : पंचसमिइसमिआ पंचममहव्वय-भरुव्वहण-वसहा जे पंचमगइ- अणुरत्ता
ते मुणिणो मे सरणं हुन्तु। अनुवाद : पाँच समितियों से युक्त होने वाले, वृषभ (तीर्थंकर)की तरह पाँच
महाव्रत के भार को ढोने वाले (पालन करने वाले)पाँचवी गति (मोक्ष)प्राप्ति में अनुरक्त (ऐसे), वे मुनि मेरे शरणभूत हों। जे चत्तसयलसंगा, समतिणमणि सत्तुमित्तणो धीरा।
साहंति मुक्खमग्गं, ते मुणिणो हुन्तु मे सरणं ॥ 42॥ - अन्वय : जे सयलसंगा चत्त तिणमणि च सत्तुमित्तणो सम धीरा मुक्खमग्गं साहति
ते मुणिणो मे सरणं हुन्तु । अनुवाद : जो समस्त परिग्रहों के त्यागी हैं, तण (घास) एवं मणि को तथा शत्र एवं
मित्र को समान मानने वाले धीर पुरुष हैं, मोक्ष-मार्ग का कथन (उपदेश)करने वाले हैं, ऐसे वे मुनि मेरे शरणभूत हों।
जो केवलणाणदिवायरेहिं तित्थंकरहिं पन्नत्तो।
सव्वजगजीवहिउं सो धम्मो होतु मम सरणं॥43॥ अन्वय : जो केवलणाणदिवायरेहिं तित्थंकरहिं पन्नत्तो (तहा) सव्वजगज्जीवहिउं सो
धम्मो मम सरणं होतु। अनुवाद : जो केवलज्ञान रूप सूर्य स्वरूप तीर्थंकरों के द्वारा प्रज्ञप्त है तथा संसार में
सभी जीवों का हितकारक है, वह धर्म मेरा शरणभूत हो। कल्लाण-कोडि-जणणा,' जत्थ अणत्थप्पबंध-निद्दलणी ।
वणिजई' जीवदया, सो धम्मो होतु मम सरणं॥44॥ 1. (अ) पंचसमिसमिआ 2. (ब) सममणितिण 3. (ब) भित्तसत्तुणो 4. (अ) दिवायरे 5. (ब) हिअउं
6. (ब) मह 7. (अ) कोडजणणा (ब) कोडिजणणी
8 (ब) निद्दणलणी 9. (अ) वणिज्जइ
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