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अन्वय : जं तवमुग्गरेहिं निवडाई कम्मनिअलाइं भंजिऊण मुक्खसुहं संपत्ता ते सिद्धा मे सरणं ( होन्तु ) ।
अनुवाद : जिन्होंने उग्र तपों द्वारा जकड़े हुए कर्म-बन्धनों को तोड़ कर मोक्ष - सुख को प्राप्त किया है। ऐसे वे सिद्ध मेरे शरणभूत हों ।
झाणानलजोगेणं, जाउं निद्दड्ढ' सयलकम्ममलो ।
कणगं व जाणअप्पा, ते सिद्धा हुन्तु मे सरणं ॥ 37 ॥
: झाणानल - जोगेणं सयलकम्ममलो निद्दड्ढ व कणगं अप्पा जाण ते सिद्धा मे सरणं होन्तु ।
अनुवाद : ध्यानरूपी अग्नि के योग से समस्त कर्म-मलों को भस्म करने (जलाने) वाले तथा निर्मल आत्मस्वरूप को जानने वाले, ऐसे वे सिद्ध मेरे शरणभूत हों । झाण' -न जम्मो न जरा, न वाहिणो न मरणं न-वाबाहा । न य कोहाइकसाया, ते सिद्धा हुन्तु मे सरणं ॥ 38 ॥ अन्वय : य न झाण न जम्मो न जरा (न) वाहिणो न मरणं न वाबाहा न य कोहाइकसाया ते सिद्धा मे सरणं हुन्तु ।
अनुवाद : जिनके न ध्यान है, न जन्म है, न व्याधि (रोग) है, न मरण है अथवा न मन की व्याधि ( अव्याबाधि) और न क्रोध, मान, माया व लोभरूप कषाय हैं, ऐसे वे सिद्ध मेरे शरणभूत हों ।
अन्वय
काउं महुअरिवित्तिं, जे बयालीस - दोस - परिसुद्धं ।
भुंजन्ति भत्तपाणं, ते मुणिणो हुन्तु मे सरणं ॥ 39 ॥
अन्वय जो बयालीस दोस परिसुद्धं महुअरिवत्तिं भत्तपाणं भुंजन्ति ते मुणिणो मे
:
सरणं हन्तु ।
अनुवाद : जो बयालीस दोषों से परिशुद्ध मधुकर (भ्रमर) की वृत्ति से आहार को भोगते (ग्रहण करते) हैं, ऐसे वे मुनि मेरे शरणभूत हों । पंचिंदिअदमणयरा' निज्जिअ कंदप्पदप्पसरपसरा ।
अन्वय
आराधना प्रकरण
धारंति बंभचेरं, ते मुणिणो हुन्तु मे सरणं ॥ 40 ॥ : पंचिंदिअदमणयरा कंदप्पदप्पसरपसरा निज्जिअ बंभचेरं धारंति ते मुणिणो
मे सरणं हुन्तु ।
1. (अ) निद्दढ
4. (अ) पंचंदिअ
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2. ( अ, ब ) जाण
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3. (अ) वाहिणा
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