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________________ 40 अन्वय : जं तवमुग्गरेहिं निवडाई कम्मनिअलाइं भंजिऊण मुक्खसुहं संपत्ता ते सिद्धा मे सरणं ( होन्तु ) । अनुवाद : जिन्होंने उग्र तपों द्वारा जकड़े हुए कर्म-बन्धनों को तोड़ कर मोक्ष - सुख को प्राप्त किया है। ऐसे वे सिद्ध मेरे शरणभूत हों । झाणानलजोगेणं, जाउं निद्दड्ढ' सयलकम्ममलो । कणगं व जाणअप्पा, ते सिद्धा हुन्तु मे सरणं ॥ 37 ॥ : झाणानल - जोगेणं सयलकम्ममलो निद्दड्ढ व कणगं अप्पा जाण ते सिद्धा मे सरणं होन्तु । अनुवाद : ध्यानरूपी अग्नि के योग से समस्त कर्म-मलों को भस्म करने (जलाने) वाले तथा निर्मल आत्मस्वरूप को जानने वाले, ऐसे वे सिद्ध मेरे शरणभूत हों । झाण' -न जम्मो न जरा, न वाहिणो न मरणं न-वाबाहा । न य कोहाइकसाया, ते सिद्धा हुन्तु मे सरणं ॥ 38 ॥ अन्वय : य न झाण न जम्मो न जरा (न) वाहिणो न मरणं न वाबाहा न य कोहाइकसाया ते सिद्धा मे सरणं हुन्तु । अनुवाद : जिनके न ध्यान है, न जन्म है, न व्याधि (रोग) है, न मरण है अथवा न मन की व्याधि ( अव्याबाधि) और न क्रोध, मान, माया व लोभरूप कषाय हैं, ऐसे वे सिद्ध मेरे शरणभूत हों । अन्वय काउं महुअरिवित्तिं, जे बयालीस - दोस - परिसुद्धं । भुंजन्ति भत्तपाणं, ते मुणिणो हुन्तु मे सरणं ॥ 39 ॥ अन्वय जो बयालीस दोस परिसुद्धं महुअरिवत्तिं भत्तपाणं भुंजन्ति ते मुणिणो मे : सरणं हन्तु । अनुवाद : जो बयालीस दोषों से परिशुद्ध मधुकर (भ्रमर) की वृत्ति से आहार को भोगते (ग्रहण करते) हैं, ऐसे वे मुनि मेरे शरणभूत हों । पंचिंदिअदमणयरा' निज्जिअ कंदप्पदप्पसरपसरा । अन्वय आराधना प्रकरण धारंति बंभचेरं, ते मुणिणो हुन्तु मे सरणं ॥ 40 ॥ : पंचिंदिअदमणयरा कंदप्पदप्पसरपसरा निज्जिअ बंभचेरं धारंति ते मुणिणो मे सरणं हुन्तु । 1. (अ) निद्दढ 4. (अ) पंचंदिअ Jain Education International 2. ( अ, ब ) जाण For Private & Personal Use Only 3. (अ) वाहिणा www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
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