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________________ 21 आराधना प्रकरण के प्रयोग को अनिवार्य माना है। जिसका अर्थ शोभादायक तत्त्वों से किया जाता है। अलंकार शब्द 'अलम्' और 'कार' इन दो शब्दों के योग से बना है, जिसका अर्थ - शोभाकारक पदार्थ है। 'अलं करोति इति अलंकार' अर्थात् जो अलंकृत या विभूषित करे, वह अलंकार है। जिस प्रकार लोक में कटक-कुण्डलादि विविध अलंकारों से कामिनी सुशोभित होती है। उसी प्रकार उपमादि अलंकारों के द्वारा कविता रूपी कामिनी का सौन्दर्य संवर्द्धित होता है। ____ काव्य के शरीरभूत तत्त्व शब्द और अर्थ हैं तथा अलंकारों के योग से इनकी (शब्द और कार्य की) शोभा में वृद्धि होती है। आचार्य वामन ने अलंकृत करने वाले तत्त्वों में उपमादि को माना है अलंकृतिः अलंकारः, करणव्युपत्या पुनः। अलंकार शब्दोऽयमुपमादिषु वर्तते ॥ (काव्यालंकारसूत्रवृत्ति, 1/1/2) अलंकार की महिमा प्रतिपादित करते हुए राजशेखर ने इसे वेद का सातवाँ अंग माना है। इसको काव्यरूपी शरीर की आत्मा तथा गुण, अलंकार और रीति को उसके बाह्यशोभाकारक धर्म के रूप में स्वीकारोक्ति दी गई है। रस और गुण काव्य के स्थिर धर्म के रूप में स्वीकार किये जाते हैं, जबकि अलंकार को अस्थिर धर्म कहकर उसकी स्थिति की अपरिहार्यता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया गया है। इस उक्ति को हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि काव्य में अलंकार हो यह जरूरी नहीं। अलंकार की सर्वमान्य परिभाषा आचार्य दण्डी ने दी है, जिसके अनुसार काव्य के शोभदायक तत्त्व को अलंकार कहते हैं। काव्य-शोभा-करान् धर्मानलंकारान् प्रचक्षते। (काव्यादर्श, 2/1) आचार्य मम्मट एवं विश्वनाथ अलंकार का सम्बन्ध रस के साथ स्थापित करते हुए कहते हैं कि अलंकार शब्दार्थ का शोभावर्धन करते हुए मुख्यतः रस के उपकारक सिद्ध होते हैं। यह शब्दार्थ का अस्थिर या अनित्य धर्म है और इनका स्थान कटक, कुण्डल प्रभृति आभूषणों की भाँति अंगों को विभूषित करता है - हारादिवदलंकारास्तेऽनुप्रासोपमादयः । रसादीनुपकुर्वन्तोऽलंकारास्तेऽङ्गदादिवत्॥ (साहित्य दर्पण, 10/1) पण्डितराज जगन्नाथ ने अलंकार को काव्य की आत्मा, व्यंग्य का रमणीयताप्रयोजन धर्म मानते हुए आनन्दवर्धन प्रभृति आचार्यों के मत की ही पुष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
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