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________________ समत्वयोग और भेदविज्ञान अन्तरात्मा में भेदविज्ञान जगाने के लिए सर्वोत्तम प्रक्रिया यह है कि साधक शरीर और आत्मा के स्वभाव और गुणों का निष्पक्षता से, तटस्थता से विश्लेषणचिन्तन करे और तादात्म्य की ग्रन्थि को तोड़े। मनुष्य ठण्डे दिल से सोचे कि यह शरीर ही मैं कैसे हो सकता हूँ। क्योंकि शरीर जन्म, जरा, मरण, बालक, यवक, वद्ध आदि अवस्थाएँ धारण करता है, पर आत्मा क्या जन्मतो है, मरती है, बूढ़ी होती है, युवा और बालक होती है ? अगर आत्मा भी शरीर की तरह होता तो दूसरा जन्म धारण करने की जरूरत ही नहीं, और न ही ज्ञान दर्शन चारित्र की साधना करने की जरूरत है । जब नास्तिकों की तरह 'भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः'- शरीर जलकर राख हो जाने पर पुनः दूसरा जन्म नहीं होता । सूत्रकृतांग सूत्र में उल्लिखित तज्जीव तच्छरीरवादी की तरह शरीर ही आत्मा है ऐसा मानने पर तो शरीर को आत्मसाधना के कष्टों में झोंकने की जरूरत ही नहीं रह जाती । परन्तु ऐसा नहीं है । गीता पुकार पुकार कर कह रही है । नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः । । न चैनं क्लेदयत्यापो, न शोषयति मारुतः ।। "इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती, पानी गला नहीं सकता और हवा सुखा नहीं सकती ।" मतलब यह कि काया तो एक दिन समाप्त होने वाली है, मगर आत्मा जो इसके भीतर विराजमान है, वह समाप्त नहीं होती । दूसरे जन्म में जहाँ भी जिस योनि में वह जाती है, उड़कर चली जाती है। शरीर मरता- जन्मता है, परिवर्तनशील है, आत्मा अजर-अमर अविनाशी है। शरीर को काटने, जलाने, गलाने और सुखाने पर आत्मा नहीं कटती, जलती, गलती या सूखती । इस तथ्य को भली भाँति हृदयंगम कर लेने पर साधक को यह पक्का विश्वास कर लेना चाहिए कि आत्मा (मैं) और शरीर अलग- अलग हैं। शरीर यद्यपि आत्मा के लिए रहने का स्थान है, शरीर में आत्मा रहती है, कुछ काल के लिए शरीर की निवासी हो सकती है आत्मा, लेकिन वह शरीर नहीं है। इस प्रकार शरीर और आत्मा की भिन्नता का अनुभव हो जाने पर ही भेदविज्ञान होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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