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________________ समत्वयोग और भेदविज्ञान सिर्फ म्यान की तरह आत्मा के रहने का स्थान समझना है। शक्ति म्यान में होती है या तलवार में ? म्यान तो सिर्फ तलवार को ठीक ढंग से सुरक्षित रखने और समय पर तलवार ठीक ढंग से काम दे सके इस उद्देश्य से हिफाजत से रखने के हेतु होता है । म्यान युद्ध में जौहर नहीं दिखा सकताः जौहर तलवार ही दिखाएगी । इसी प्रकार शरीर या शरीर से सम्बद्ध मन, वाणी, बुद्धि, इन्द्रियाँ, चित्त आदि में अपने आप में कोई शक्ति नहीं है। वह जो कुछ शक्ति है, आत्मा की ही है। अगर शरीर या इससे सम्बद्ध वस्तुओं में अपनी शक्ति होती, तो शक्ति मुर्दा शरीर में भी होती । इसीलिए आचार्यश्री अमितगति ने सामायिक पाठ के इस श्लोक में स्पष्ट कहा हैं - 'जिनेन्द्र ! कोषादिव खड्गयष्टिम्' अनन्त शक्तिशाली निर्दोष आत्मा को शरीर से उसी तरह अलग कर सकूँ जैसे म्यान से तलवार अलग की जाती है। इसमें कहीं भी शरीर को नष्ट करने की या शरीर को छोड देने की बात नहीं कही गयी है। सिर्फ आत्मा को --शरीर भाव में बंधी हुई आत्मा को - शरीर से अपने भेदविज्ञान के चिन्तन से पृथक् करने की - भिन्न मानने की बात प्रस्तुत की गई है। साथ ही शरीर को शक्तिशाली और दोषों से रहित नहीं बताकर यहाँ आत्मा को ही. अनन्त शक्तिशाली और दोषों से रहित बताया है। ____ अन्तरात्मा में भेदविज्ञान जगाने के लिए सर्वोत्तम प्रक्रिया यह है कि साधक शरीर और आत्मा के स्वभाव और गुणों का निष्पक्षता से, तटस्थता से विश्लेषणचिन्तन करे और तादात्म्य की ग्रन्थि को तोड़े । प्रश्न होता है कि समता योग के सन्दर्भ में यहाँ जो शरीर से आत्मा को पृथक् करने का विधान किया गया है, उसके पीछे क्या रहस्य है ? शरीर को आत्मा के साथ रहने दिया जाए तो क्या समतायोग नहीं सधेगा? इसके उत्तर में हमें गहराई से विचार करना होगा कि समतायोग का उद्देश्य क्या है ? समतायोग का मूल उद्देश्य यह है कि शरीर और शरीर से सम्बन्धित वस्तुओं को लेकर जो मोह, ममता, आसक्ति और मूर्छा उत्पन्न होती है, उसी को लेकर जो हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह के पाप- दोषों की वृद्धि होती है, परिवार, धनसम्पत्ति, राज्यसत्ता, जमीन-जायदाद आदि भौतिक वस्तुओं को लेकर जो क्रोध, मान, माया, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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