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________________ समत्वयोग और कार्ल मार्क्स ४९ श्रम प्रक्रिया या उत्पादन के सारे सिलसिले, हर लाभ और प्रतियोगिता पर आधारित स्वामित्व के रहते, श्रमजीवी जनता के लोग अपने कार्य को कभी अपना नहीं समझ पाते । अतः उन्हें कार्य बोझ लगता है अतएव उन्हें केवल जैवी स्तर की गतिविधियों में आनन्द आता है (भोजन, पान, यौनसुख आदि)। इस प्रकार निजी स्वामित्व पर आधारित विषम आर्थिक व्यवस्था में साधारणजन पशु-स्तर पर रहता है । पूँजीवादी समाजों में करोड़ों लोग ऐसा ही अमानवीय और अलगावग्रस्त जीवन जी रहे हैं। मनुष्य यदि वह पशु नहीं है तो वह केवल आवश्यकता पूर्ति के लिए कार्य नहीं करता, वह आनन्द या आत्म-अभिव्यक्ति के लिए काम करता है। कार्य उसके लिए स्वेच्छापरक हो, विवशता नहीं । समताहीन समाजों में मनुष्य, पशु की तरह विवश होकर कार्य करता है । मनुष्य का यह पाशवीकरण या अमानवीकरण (डी-ह्यूमेनाइजेशन) आर्थिक क्षेत्र में व्यक्तिगत सम्पत्ति पर एकाधिकारी वर्गों के अस्तित्व के कारण है। अतः वर्गहीन समाज में ही समता रह सकती है। मार्क्स को नास्तिक व धर्म-विरोधी बताया जाता है । स्वयं उन्होंने कहा था - "धर्म अफीम है, लोगों को पागल करने वाला एक नशीला पदार्थ है।" .... लेकिन न मार्क्स धर्म का अन्तस्तत्त्व समझ पाया और न धर्म के तथाकथित प्रचेता मार्क्स को समझ पाये । मार्क्स ने धर्म के नाम पर देखा उन लोगों को, जो जनसामान्य को स्वर्ग का प्रलोभन तथा नरक का भय दिखाकर दान के नाम पर लूटते थे, धनाधिकारियों के संकेत पर उनके शोषण व अन्याय का समर्थन करते थे और कर्मकाण्डमय जीवन जी रहे थे । यह सब अफीम ही था जैसा कि मार्क्स ने कहा । मार्क्स जान ही नहीं पाया कि जिस 'धर्म' को वह अफीम कह रहा है वह 'धर्म' है ही नहीं और जो धर्म है वह स्वयं उसके जीवन में शत-शत धाराओं से फटने को आतुर है । मार्क्स करुणा की साकार मूर्ति थे । उनकी करुणा उन्हें जीवन के सारे सुख-साधनों से दूर प्राणघाती विपन्नता में जीने के लिए ले गयी देश-विदेशों में । उनका पुत्र दवा तथा उपचार के अभाव में मरा । उनकी पत्नी विपन्नता, बीमारी और भुखमरी से मरी । स्वयं मार्क्स भी इसी से जर्जर तन होकर 'केपीटल' नामक ग्रन्थ लिखते हुए स्वर्गवासी हुए । इतनी करुणा थी उनमें जिसकी तुलना बुद्ध के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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