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समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार - अनेकान्तवाद
२४७ द्वन्द्वात्मक हैं, अत: जीवन के पश्चात्, मृत्यु और मृत्यु के पश्चात् जीवन अनिवार्य है।" इसी प्रकार सुकरात, अरस्तु आदि प्रमुख दार्शनिकों की निष्ठा भी पुनर्जन्म के सिद्धान्त में रही है।
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के अनुसार जगत के परिवर्तन की व्याख्या जगत् से करना वैज्ञानिक भौतिकवाद का ध्येय है। वह परिवर्तन जिन अवस्थाओं से होकर गुजरता है, वे सीढ़ियाँ वैज्ञानिक भौतिकवाद की त्रिपुटी हैं :
१. विरोधी समागम २. गुणात्मक परिवर्तन ३. प्रतिषेध का प्रतिषेध
वस्तु के उदर में विरोधी प्रवृत्तियाँ जमा होती हैं। इससे परिवर्तन के लिए सबसे आवश्यक वस्तु गति पैदा करना है, फिर वाद व प्रतिवाद के संघर्ष से संवाद रूप में नया गुण पैदा होता है, यह गुणात्मक परिवर्तन है। पहले जो वाद था उसको भी उसकी पूर्णगामी कड़ी से मिलाने पर वह किसी का प्रतिषेध करनेवाला संवाद था। अब गुणात्मक परिवर्तन जब उसका प्रतिषेध हुआ तो यह प्रतिषेध का प्रतिषेध हुआ है।
कुछ लोग मानते हैं कि द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की देन संसार को हीगल ने दी और मार्क्स ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया। कुछ भी हो, द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संबंध आज मार्क्स के साथ जुड़ा हुआ है। और वह उसीका माना जाता है। मार्क्स ने अपने इस वाद को आत्मा व अणु तक ही सीमित नहीं रखा, किन्तु उसे राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक आदि जीवन के सभी प्रमुख पहलुओं पर कसा । प्रस्तुत प्रकरण में यह आँकना है कि जड़ के आन्तरिक संघर्ष के परिणामस्वरूप होनेवाले गुणात्मक परिवर्तन से चेतना का उदय होता है, माकर्सवाद का यह निर्भीक कथन तर्क व यथार्थता की कसौटी पर कहाँ तक खरा उतरता है। farrteft H4174 (Unity of Opposition)
दो विरोधी पदार्थों का मिलन ही विरोधी समागम नहीं, किन्तु मार्क्स के कथनानुसार एक ही पदार्थ में दो विरोधी गुणों (स्वभावों) की अन्तर्व्यापकता विरोधी समागम है । वे १. यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् - चार्वाक् दर्शन
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