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समत्त्रयोग
१. समत्व का अर्थ तथा परिभाषा । समता शब्द 'सम' और 'ता' - इन दो पदों के योग से बनता है। 'सम्' (वैक्ल्व्ये ) धातु से 'अच्' प्रत्यय' होकर 'सम' पद बना, जिसका अर्थ है समान' 'ता' (तल्) भाववाची प्रत्यय है । अतः समता का अर्थ हुआ समानता का भाव ।
'सम' शब्द प्राकृत एवं संस्कृत में समान रूप से प्रयुक्त होता है प्राकृत 'सम' शब्द के संस्कृत में तीन पर्यायवाची हैं - सम, शम, और श्रम । इसी प्रकार प्राकृत 'सम' शब्द से निर्मित समण (श्रमण) के भी संस्कृत में तीन पर्यायवाची होते हैं - समन, शमन, और श्रमण । 'समण' का अर्थ होता है जो समता भाव का धारी है, जो अपनी वृत्तियों को शान्त रखता है और जो अपने विकास के लिए निरन्तर परिश्रम या तप (श्रमु तपसि खेदे च) करता रहता है । अतः समता का अर्थ हुआ समभाव, शान्त भाव तथा श्रमशीलता अथवा तप:शीलता । दूसरे शब्दों में प्राणीमात्र के प्रति समत्व की उदार भावना से समन्वित आत्मोत्थान के लिए प्रशान्त वृत्तिता एवं तप:शीलता ही समता है।
समत्व
____ आत्मा की प्रशान्त निर्मल वृत्ति ही 'समता' है । वही सम्यक् चारित्र रूप मोक्ष का मूल है । आचार्य कुन्दकुन्द (ई.प्रथम शती) ने चारित्र का स्वरूप निरूपण करते हुए कहा है :
"चारित्तं खलु धम्मो-धम्मो जो सो समो त्ति णिट्ठिो ॥
मोहक्खोहविहीणो परिणामो अप्पणो हु समो ॥
१. 'नन्दिग्रहिपचोदिभ्यो ल्युणिन्यचः' ३.१.१३४, पाणिनि के इस सूत्र से 'सम्' का
पचादि गण में पाठ होने के कारण 'अच्' प्रत्यय हुआ । २. 'समस्तुल्य: सदृक्षः सदृशः सहक् साधारण: समानश्च' अमर कोश, २.१०.३६ । ३. 'तस्य भावस्त्वतलौ' ५.१.११९, पाणिनि के इस सूत्र से 'तल्' (त्) हुआ, तदनन्तर
स्त्रीवाची 'टाप्' (आ) प्रत्यय हुआ । ४. Eguality, Impartiality - आप्टे की संस्कृत--इंग्लिश डिक्सनरी पृ. १०९३. ५. श्री इन्द्रचन्द्र- 'भारतीय संस्कृति की दो धाराएँ सन्मति ज्ञानपीट, आगरा, पृ. ४-५ । ६. आचार्य कुन्दकुन्द- 'प्रवचनसार', सम्पादक डॉ. ए. एन. उपाध्ये, श्रीमद् राजचन्द्र
जैन शास्त्रमाला, अगास, गाथा क्र. १/७ ।
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