________________
२१६
समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि है, वैसे ही आत्मा पर लगे हुए दोषों को आलोचना, निन्दना, गर्हणा और प्रायश्चित्तरूप तपश्चरण और धर्म-साधना से धोकर साफ करना शुद्धि है। मूलाचार (गा. ६१३) में प्रतिक्रमण के ७ भेद बताये गये हैं
“पडिक्कमणं देवसियं रादियं इरियापधं च बोधव्वं ।
पक्खिय चादुम्मासिय संवच्छरमुत्तमद्रं च ॥ __ अतिचारों (दोषों) से निवृत्त होना प्रतिक्रमण है । वह दैवसिक, रात्रिक, ऐपिथिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक, सांवत्सरिक और उत्तमार्थ प्रतिक्रमण यों सात प्रकार का है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org