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समत्व - योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक
२१५ प्रतिक्रमण, प्रतिचरणा, प्रतिहरणा, वारणा, निवृत्ति, निन्दा, गर्हा, और शोधि इस प्रकार प्रतिक्रमण आठ प्रकार का होता है।
प्रतिक्रमण की व्याख्या मैं पहले कर चुकी हूँ। यहाँ तो चारित्रिक अशुद्धि के प्रतिक्रमण का प्रसंग है । इसलिए प्रतिक्रमण का अर्थ होगा प्रमादवश सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप स्वस्थान से हटकर मिथ्यात्व, अज्ञान एवं असंयमरूप परस्थान में साधक चला गया हो तो 'मिच्छा मि दुक्कडं' देकर पश्चात्ताप पूर्वक स्वस्थान में उसका पुन: लौट आना प्रतिक्रमण है। पापक्षेत्र से पुन: आत्मशुद्धि क्षेत्र में लौट आना ही वास्तव में प्रतिक्रमण है। इसके पश्चात् है प्रतिचरणा, जिसका अर्थ है अहिंसा सत्य आदि संयमक्षेत्र (चारित्रिक क्षेत्र) में भलीभाँति विचरण करना। अर्थात् असंयम (कुचारित्र या चारित्र रहित) क्षेत्र से दूर से बचते हुए सावधानीपूर्वक चारित्र (संयम) का शुद्ध एवं निर्दोष पालन करना प्रतिचरणा है।
प्रतिक्रमण का तीसरा रूप है परिहरणा, जिसका अर्थ है सब प्रकार से अशुभयोगों, दुर्ध्यानों एवं दुराचरणों का त्याग करना । चारित्र पथ पर चलते हुए अनेक प्रलोभन, भय, विघ्न आदि आते हैं, साधक सावधानीपूर्वक उनकी परिहरणा न करे तो पथभ्रष्ट हो सकता है।
चौथा रूप है वारणा; जिसका अर्थ है आत्मा को विषयभोग, कषाय आदि चारित्र को अशुद्ध करने वाले वीतरागदेव द्वारा निषिद्ध तत्त्वों से बचाना ।
इसके पश्चात् प्रतिक्रमण का पाँचवाँ रूप है निवृत्ति । अशुभ या पापाचरण रूप अकार्य से हट जाना, विरत हो जाना निवृत्ति है। यही चारित्र का लक्षण है। प्रमादवश ही साधक अशुभ अकार्य में आता है, पर उसे झटपट अप्रमाद अवस्था में लौट आना चाहिए ।
प्रतिक्रमण का छठा रूप निन्दा है। यह निन्दा दूसरों की नहीं, अपने आत्मदेव की साक्षी से पूर्वकृत अशुभ आचरणों को बुरा समझकर उसके लिए अपने आप को धिक्कारना पश्चात्ताप करना, इस प्रकार मन का मैल साफ करना निन्दा (आत्मनिन्दा) है।
प्रतिक्रमण का सातवाँ रूप है गर्हा, जिसका अर्थ है - गुरुदेव, अपने से ज्येष्ठ साधक या अनुभवी साधक के समक्ष अपने पापों की धुंडियाँ खोल देना । समाज या महान आत्मा के समक्ष अपने पाप-दोषों को खोलना सरल बात नहीं है, मिथ्याभिमान और दोष रूप विष तो इससे बिलकुल नष्ट हो जाता है ।
प्रतिक्रमण का आठवाँ और अन्तिम रूप है शोधि । प्रतिक्रमण का यह रूप पाप विशुद्धिकारक है । वस्त्र आदि पर लगे हुए दाग को साबुन आदि से धोकर साफ किया जाता
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