________________
.
१९४
समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि इस तरह स्पष्ट है कि सामायिक मनुष्य के पूर्ण विकास के लिए एक सर्वोच्च साधन है।
समता जैसे महत् तत्त्व को प्राप्त कर, अनेकान्त शैली द्वारा प्ररूपित स्वसत्ता रूप आत्मावलोकन के बल से ही जैनागमों द्वारा कथित १४ गुणस्थान रूप सोपानों को पार करने का तथा उससे प्राप्त सिद्ध-बुद्ध अवस्था तक पहुँचने का रहस्य समझा जा सकता है। तभी समता-शिखर का प्रयाण सम्भव हैं।
सामायिक में मन तथा आया के दोष :
गृहस्थ विधिपूर्वक, चेतनापूर्वक सामायिक करने बैठे फिर भी कभी-कभी जाने-अनजाने मन, वचन और काया के कुछ दोष हो जाने का पूरा संभव है। शास्त्रकारों ने मन के दस दोष, वचन के दस दोष और काया के बारह दोष मिलाकर बत्तीस प्रकार के दोष बतलाये हैं ।' उन्हें जानने से ऐसे दोषों से रक्षण हो सकता है। निम्न गाथा में मन के दोष बताये है :
अविवेक जसो कित्ती लाभत्थो गव्व भय नियाणत्यो।
संसय रोस अविणउ अबहुमाण दोसा भाणियव्वा ॥ (१) अविवेक (२) यशोवांछा (३) लाभ वांछा (४) गर्व (५) भय (६) निदान (नियाj) (७) संशय (८) रोष (९) अविनय और (१०) अबहुमान | ये दस मन के दोष माने जाते हैं।
(१) अविवेक : सामायिक के प्रयोजन और स्वरूप के ज्ञान से वंचित रह कर सामायिक
करना ।
(२) यशोवांछा : स्वयं को यश मिले, अपनी वाह वाह हो ऐसे प्रयोजन से सामायिक करना।
(३) लाभ : सामायिक करूँगा तो धन लाभ होगा, अन्य भौतिक लाभ भी होंगे इस भाव से सामायिक करना।
(४) गर्व : में जैसा सामायिक करता हूँ वैसा कोई कर नहीं पायेगा ऐसा गर्व रखना
(५) भय : यदि मैं सामायिक नहीं करूँगा तो लोग मेरी आलोचना करेंगे। इसलिए ऐसी चिन्ता या ऐसे भय के साथ सामायिक करना ।
(६) निदान : निदान का अर्थ है । नियाj । धन, स्त्री, पुरुष, व्यापार में खास लाभ प्राप्त करने के विशेष प्रयोजनपूर्वक संकल्प के साथ सामायिक करना ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org