________________
समत्व - योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक
१९५
(७) संशय: सामायिक करने से कोई लाभ होता है या नहीं इसकी किसको खबर, ऐसा संशय लगातार मन में रखना ।
(८) रोष दोष: रोष अर्थात क्रोधपूर्वक सामायिक करने बैठना। क्रोध के अतिरिक्त अन्य कषाय सहित सामायिक करना ।
(९) अविनय दोष : विनयभाव रहित सामायिक करना ।
(१०) अबहुमान दोष : सामायिक के प्रति बहुमान होना चाहिए। ऐसे बहुमान रहित और उत्साह आनन्द रहित, प्रेमादरभाव रहित, भक्ति भाव रहित सामायिक करना ।
सामायिक में वचन के दस दोष बताये हैं :
कुवयण सहसाकारे, सछंद संखेव कलहं च ।
विगहा विहासो ऽ सुद्दं निखेक्खो मुणमुणा दोसा दस ||
(१) कुवचन : सामायिक में कुवचन, असभ्य वचन, तुच्छकार युक्त शब्द, अपमानजनक शब्द, बीभत्स शब्द आदि बोलना ।
(२) सहसाकार : यकायक, असावधानी से, बिना सोचे, मन में जैसे आये वैसे वचन बोलना ।
(३) स्वच्छंद : शास्त्र - सिद्धान्त के विरुद्ध, सामायिक गौरव के अनादर युक्त, असत्यमय, मनस्वी, निम्नस्तर के स्वच्छंदी वचन बोलना ।
(४) संक्षेप : सूत्रपाठ आदि का उच्चारण संपूर्णतया न कर उसका संक्षेप करना, अक्षर एवं शब्द संक्षिप्त रूप से बोलना ।
(९) कलह : दूसरे के मन को दुःख पहुँचे, टंटे-फिसाद के निमित्त बने ऐसे शब्द सामायिक में बोलना अथवा तो ऐसे शब्द जान-बूझ कर बोलना जिससे कलह पैदा हो, क्लेश पैदा हो और पारस्परिक बैर भाव पैदा हो।
चित्त
(६) विकथा : चित्त का विषयांतर हो अथवा तो अशुभ भाव या अशुभ ध्यान की और प्रवृत्त हो ऐसी बातों को विकथा कहते हैं । मुख्यतः चार प्रकार की विकथा होती हैं : स्त्री कथा, भक्तकथा, राजकथा और कथा |
(७) हास्य : सामायिक में किसी की भी मजाक मसखरी करना, कटाक्ष वचन बोलना, दूसरों को हँसने के लिए वचन बोलना, अन्यों के वचनों का अनुकरण करना, जान-बूझ कर आरोह अवरोह में आवाज करनी और सामायिक का गौरव भंग करना ।
(८) अशुद्ध : जैन धर्म में उच्चारण- शुद्धि पर अधिक भार दिया जाता है। 'आ' 'ओ'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org