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समत्व - योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक
१९३ उसे परम शान्ति प्रदान करता है । समता से उसमें आनन्द, एकता, भाईचारा, प्रेम, ज्ञान, कर्म आदि प्रकाशित होते हैं।
अशान्ति और दुःख का मूल कारण विषमता है और इसी का परिणाम है संघर्ष और कलह । यदि परिवार में योग्य-अयोग्य, बड़े-छोटे, धनी-गरीब का प्रश्न आता है तो पारिवारिक संघर्ष उत्पन्न होते हैं और परिवार में कलह छाया रहता है। इसी प्रकार सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों के भी कारण इन क्षेत्रों में रही हुई सबल-निर्बल, ऊँच-नीच, धनी-निर्धन आदि की विषमता की स्थितिया और भावनाएँ हैं। ये तो विषमताजन्य बाह्य संघर्ष हैं जिन्हें हम जीवन में देखते हैं परन्तु इनका भी कारण है हृदय की विषमता । यह एक तथ्य है कि प्रत्येक प्रकार के बाह्य संघर्ष की सृष्टि सर्व प्रथम हमारे हृदय में होती है । आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि संघर्षो का बीज सर्व प्रथम मानव के हृदय में अंकुरित, पल्लवित और फलित होता है । अत: यदि हृदय की विषमता का किसी प्रकार निवारण किया जा सके तो समस्त संघर्षो का अन्त होकर आनन्द और शान्ति की प्राप्ति हो सकती है।
सामायिक की साधना विषमता का निवारण करने और समता को स्थापित करने का एक मात्र अमोघ उपाय है। इसी से आत्मिक आनन्द की प्राप्ति संभव है। जब तक हृदय में रागद्वेष, ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार आदि की विषमता भयंकर ज्वालाओं की तरह जलती रहेगी, आत्मिक आनन्द एक स्वप्न ही बना रहेगा। इन क्रोधादि ज्वालाओं को शान्त करने हेतु सामायिक की साधना एकमात्र सफल साधन है। इसी सामायिक-साधना से मुमुक्षुओं को मोक्ष के लक्ष्यकी प्राप्ति हुई है। शास्त्रकारों ने सामायिक की महिमा बताते हुए कहा है : -
“दिवसे दिवसे लक्ख देइ सुवण्णस्स खंडियं एगो ।
एगो पुण सामाइअं करेइ न पहुप्यए तस्स ॥' लाख लाख सुवर्ण मुहरों का प्रतिदिन दान देने वाला व्यक्ति भी एक शुद्ध सामायिक करने वाले व्यक्ति के समानान्तर नहीं पहुँच सकता । शास्त्रकारों ने अन्यत्र कहा है :
"किं तिव्वेण तवेणं, किं च जवेणं किं चरितेणं ।
सामाइ विण मुक्खो न हुं हुओ कहवि न हुहोई॥" अर्थात् चाहे कोई कितना ही तप तपे, जप जपे अथवा मुनिवेश धारण कर स्थूल क्रियाकाण्ड रूपी चरित्र पाले परन्तु समता भाव रूप सामायिक के बिना न किसी की मुक्ति हुई है और न होगी।
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