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________________ १७९ समत्व - योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक की निंदा-गर्दा क्यों और कितनी आवश्यक है वह समझाया। इसी प्रकार जिन अर्थों के मर्म से वे अपरिचित थे, वह उन स्थविरों से प्राप्त होते ही कालास्य वेणिपुत्र ने प्रतिक्रमण सहित पंच महाव्रत का धर्म अपनाया। और उस धर्म का अच्छी तरह पालन कर, उपसर्गादि समभाव से सहन कर, कर्म क्षय कर, केवलज्ञान प्राप्त किया और विगति प्राप्त की। इस प्रकार सामायिक का अर्थ है आत्मा। इतनी उच्च कोटि तक सामायिक का महात्म्य बताया गया है। ‘आवश्यक नियुक्ति में कहा गया हैं : सामाइय भावपरिणय भावाओ जीव एव सामाइयं । (स्वभाव परिणति ही सामायिक है। इसी तरह स्वभाव के दृष्टिकोण से जीव (आत्मा) ही सामायिक है। 'विशेषावश्यक भाष्य' में भी कहा गया है : सामाइओ वउत्तो जीवो सामाइयं सयं चेव । (सामायिक में उपयोग युक्त जीव (आत्मा) अपने आप स्वयं सामायिक है।) पर्यायवाची नामों के दृष्टिकोण से भी सामायिक के प्रकार बताये गये हैं। सामायिक के आठ प्रकारों के नाम और उन प्रत्येक पर शास्त्रकारों ने दृष्टान्त दिये हैं। इसके लिए निम्न प्रकार की गाथाएँ है : सामाइयं समइयं सम्मं वाओ समास संखेवो । अणवज्झं च परिण्णा पच्चखाणेय ते अट्ठा ॥ (सामायिक, समयिक, समवाद, समास, संक्षेप, अनवद्य, परिज्ञा और प्रत्याख्यान इस प्रकार आठ नाम सामायिक के हैं।) दमदंत मेअजे कालय पुत्था चिलाइपुत्ते य । धम्मसइ इला तेइली सामाइय अठ्ठदाहरणा ॥ (१) दमदंत राजवी (२) मेतार्य मुनि (३) कालकाचार्य (४) चिलाती पुत्र (५) लौकिकाचार पंडित लोग (६) धर्म रुचि साधु (७) इलाचीपुत्र (८) तेइली पुत्र । सामायिक संबंधी इस प्रकार आठ उदाहरण हैं। सामायिक के आठ नामों के अर्थ निम्न प्रकार हैं : (१) सामायिक-जिसमें समता भाव रखा जाता है। दमदंत राजवी इस समभाव सामायिक पर दृष्टान्त रूप है। १. आव. नि. ७६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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