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________________ १८० समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि (२) समयिक-स-मयिक । मया का अर्थ है दया । सर्व जीवों के प्रति दया का भाव रखना यही है समयिक सामायिक। इस समयिक सामायिक पर मेतार्य मुनि का दृष्टान्त सुप्रसिद्ध है। (३) समवाद-सम का अर्थ है राग-द्वेष रहितता। जिसमें इस प्रकार के वचन बोले जाते हैं वही समवाद सामायिक। उसके लिए कालकाचार्य (कलिकाचार्य) का दृष्टान्त दिया जाता है। (४) समास-समास का अर्थ है संलग्न होना, एकत्रित करना, विस्तार कम करना, कम शब्दों में शास्त्रों का मर्म समझाना । इस समास सामायिक पर चिलाती-पुत्र का दृष्टान्त दिया जाता है। (५) संक्षेप - कम शब्दों का अधिक अर्थ विस्तार सोचना अथवा द्वादशांगी का सार रूप तत्त्व जानना । इस संक्षेप सामायिक पर लौकिकाचार पंडितो का दृष्टान्त दिया जाता है। (६) अनवद्य - अनवद्य का अर्थ है निष्पाप । अनवद्य सामायिक वही है जो पाप रहित आचरण रूप सामायिक है । उस पर अणगार (यति) का दृष्टान्त दिया जाता है । (७) परिज्ञा - परिज्ञा का अर्थ है तत्त्व को अच्छे रूप से जानना । परिज्ञा सामायिक पर इलाचीकुमार का दृष्टान्त दिया जाता है । (८) प्रत्याख्यान - प्रत्याख्यान का अर्थ है पच्चक्खाण । किसी भी चीज की प्रतिज्ञा है पच्चक्खाण । प्रत्याख्यान सामायिक पर तेइलीपुत्र का दृष्टान्त दिया गया है। इस प्रकार सामायिक के आठ अलग अलग पर्याय सदृष्टांत बताये गये हैं। भगवान महावीर ने स्याद्वाद और अनेकान्तवाद की दृष्टि देकर जगत के जीवों पर महान उपकार किया है । भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं के दृष्टिकोण से प्रत्येक परिस्थिति की जांच की है । सामायिक के विषय में अर्थ, रहस्य और ध्येय के ज्ञान बिना केवल गतानुगतिक परंपरा से ऐसा वैसा सामायिक कर्ता से लेकर समभाव की विशुद्धतम परिणति तक सामायिक की अनेक कक्षाऐ होती हैं। न्यय और न्यास के प्रखर अभ्यासी श्री यशोविजयजी ने सातन्य की अपेक्षा को दृष्टि में रखकर सामायिक के प्रकार दिखलाये हैं और उस सामायिक स्वरुप का वर्णन भी उन्होंने एक पद में किया है। वे लिखते हैं : चतुर नर । सामायिक नय धारो ! लोक प्रवाह छोडकर अपनी परिणाते शुद्ध विचारो। (हे चतुरनर ! नय सामायिक को धारण करो । लोक प्रवाह का त्याग कर अपनी शुद्ध परिणति सोचलो।) दूसरे पद में वे संग्रह नय की अपेक्षा से सामायिक का आदर्श प्रस्तुत करते हुए कहते है : द्रव्यत अखय अभंग आतमा सामायिक निज जाते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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