________________
१७८
समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि उपाध्याय श्री यशोविजयजी ने ‘सवासो गाथा' के (एक सौ पच्चीस गाथाओं के स्तवन में कहा है :
भगवती अंगे भखीओ, सामायिक अर्थ, सामायिक पण आतमा धरो सूधो अर्थ आत्म तत्त्व विचारीए ।
(भगवती सूत्र में सामायिक का अर्थ दिया गया है। उसका अर्थ सरल है। वह है आत्मा ही सामायिक है। तो आत्मतत्त्व को सोचिए ।)
श्री कुंदकुदाचार्य ने 'नियमसार' में इस प्रकार के निश्चय सामायिक का ‘स्थायी' सामायिक रूप से परिचय दिया है।
जो समो सव्वभूएसु तसेसु थावरेसु य ।
तस्स सामाइयं ठाइ इय केवलि भासियं ॥१२६।। — (स और स्थावर सभी जीवों के प्रति जो समता भाव रखता है उसका सामायिक स्थायी है ऐसा केवल भगवंतो ने कहा है ।)
'भगवती सूत्र' में एक सुंदर प्रसंग का आलेखन किया गया है। उसमें सामायिक के तत्त्व स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। .
भगवान महावीर के समय में भगवान पार्श्वनाथ की परंपरा के कई साधु विचरते थे । भगवान पार्श्वनाथ के समय में चातुर्थ महावर (चार महाव्रत) के धर्म का प्रचार था । भगवान महावीर ने देशकाल को सम्मुख रखकर चार व्रतों की जगह पाँच महाव्रत का उपदेश दिया और प्रतिदिन काल प्रतिक्रमण का भी बोध दिया ।
भगवान पार्श्वनाथ की परंपरा के कालास्य वेणिपुत्र नामक अणगार (यति) भगवान महावीर स्वामी के कुछ साधुओं से मिलते हैं । तब वे पूछते हैं, 'हे स्थविरो! तुम सामायिक जानते हो ? तुम सामायिक का अर्थ समझते हो ?'
स्थविरों ने कहा, 'हे कालास्य वेणिपुत्र ! हम सामायिक जानते हैं। और सामायिक का अर्थ भी समझते हैं।
हे स्थविर ! यदि आप जानते हैं तो मुझे बतलाइये कि सामायिक क्या है ? 'हे आर्य ! हमारी आत्मा ही सामायिक है और वही सामायिक का अर्थ है । इसके बाद उन स्थविरोंने कालास्य वेणिपुत्र को संयम साधना के लिए क्रोधादि कषायों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org