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समत्वयोग का आधार-शान्त रस तथा भावनाएँ
कौरवों और पाण्डवों में युधिष्ठिर को सर्वाधिक सम्मान मिला है। वे सभी के विश्वासपात्र थे, क्योंकि उनमें गुणदृष्टिमूलक प्रमोदभावना विकसित हो चुकी थी। फलतः वे अपने इस गुण के कारण अनेक सद्गुणों का जीवन में विकास कर सके । उन्होंने महाभारत में स्वयं कहा है :
'सत्यं माता पिता ज्ञानं, धर्मो भ्राता दया सखा ।
शान्तिः पत्नी क्षमा पुत्रः षडेते मम बान्धवाः ॥
सत्य मेरी माता है, ज्ञान पिता है, धर्म भ्राता है, दया मित्र है, शान्ति मेरी पत्नी है और क्षमा मेरा पुत्र है; ये ६ ही मेरे सच्चे बन्धु हैं ।
... दत्तात्रेय की प्रमोदभावना बहुत ही विकसित हो गई थी, क्योंकि उनमें गुणग्राही दृष्टि का पूर्ण विकास हो चुका था। भागवत के ११वें स्कन्ध में इसका वर्णन है। यदुराजा एक दिन शिकार खेलने गये थे। घोर जंगल में एक अवधूत लेटे हुए थे; जो अत्यन्त प्रसन्नमुख एवं संसारभय निवारक थे। राजा ने उन्हें देखकर प्रणाम किया और सविनय पूछा - "भगवन् ! आपने इतना आनन्द कैसे और कहाँ से प्राप्त किया ? कृपा करके इसका रहस्य बताएँ ।"
दत्तात्रेय ने गंभीरतापूर्वक कहा - "राजन् ! मैंने अपने जीवन में चौबीस (गुण) गुरु किये हैं, इस कारण मैं बड़ा निहाल हो गया। अपनी आत्मसमाधि, मस्ती और आत्मानन्द में मग्न रहता हूँ। वे २४ गुरु ये हैं :
(१) पृथ्वी, (३) आकाश,
(४) पानी, (५) अग्नि ,
(६) चन्द्र, (७) सूर्य,
(८) कबूतर, (९) अजगर,
(१०) समुद्र, (११) पतंगा,
(१२) भौंरा, (१३) मक्खी ,
(१४) हाथी, (१५) मृग,
(१६) मछली, (१७) पिंगला,
(१८) चील, (१९) बालक,
(२०) कन्या, (२१) तीर बनाने वाला, (२२) साँप,
(२) हवा,
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