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________________ समत्वयोग-एक समनवयदृष्टि सद्गुणदृष्टि विकसित हो जाती है तब सोते-उठते, बैठते-चलते किसी भी कार्य में प्रवृत्त होते वह उस महान व्यक्ति के गुण का चिन्तन करके अपने में भी उस सद्गुण का विकास कर सकता है। इसी प्रकार जो व्यक्ति किसी भी वीतराग प्रभु या जीवन्मुक या सिद्ध परमात्मा का अथवा किसी आदर्श गुणीपुरुष के गुण का चिन्तन करता है तो अभ्यास बढ़ जाने से उसमें भी वह गुण आ सकता है अथवा अगले जन्म में भी वह गुणग्राहक प्रमोदभावना के कारण उस गुण की प्रतिमूर्ति बन जाता है । गजसुकुमार की क्षमा, धर्मरुचि मुनि की करुणा, भगवान महावीर का उग्रतप एवं कष्टसहिष्णुता, शालिभद्र का पूर्वजन्म में दान, धन्ना का वैराग्य, श्रीराम का समभाव, श्रीकृष्ण का अनासक्त कर्मयोग आदि गुणों का चिन्तन करने से साधक को बहुत ही आत्मबल, अद्भुत प्रेरणा तथा तदनुसार आचरण करने के लिये प्रोत्साहन मिलता है। धर्मशास्त्र का यह एक निर्णीत सत्य है कि 'महानिति भावयन् महान् भवति' जो मनुष्य महान होने की भावना किया करता है वह एक दिन अवश्य महान बन जाता है। हनुमान स्तोत्र या हनुमान चालीसा का केवल पाठ कर जाने से उतना लाभ नहीं मिलता जितना हनुमानजी के संयमित जीवन, कठोर श्रम, सेवाभाव, सादा खान-पान आदि सद्गुणों का चिन्तन - मनन करके जीवन में उतारने से मिल सकता है। प्रमोदभावना के फलस्वरूप गुणग्राहकता के उन्नत विचार उसे प्रतिक्षण ऊपर उठने की प्रेरणा देते हैं, जिससे वे अपनी समत्व- साधना में पूरे जोश के साथ लगे रहते हैं। इसीलिए प्राचीन महामनीषियों ने प्रमोदभावना की प्रेरणा देते हुए कहा गुणेषु क्रियतां यत्नः किमाटोपैः प्रयोजनम् । विक्रीयन्ते न घण्टाभिर्गावः क्षीरविवर्जिताः ॥ आप तो गुणग्रहण में प्रयत्न कीजिए । बाह्य आडम्बर, प्रदर्शन और विज्ञापन में क्या रखा है ? दूध न देने वाली गायों के गले में चाहे जितने घंटे बाँध दिये जाएँ उन्हें कोई नहीं खरीदता । क्योंकि गायों का मूल्य तो उनके दूध पर निर्भर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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