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________________ समत्वयोग का आधार-शान्त रस तथा भावनाएँ न्याय का तकाजा है कि गुणीजनों के गुणों को प्रोत्साहित किया जाए, उन्हें प्रतिष्ठा दी जाए । अपने आस पास दृष्टि डालने पर ऐसे अनेक व्यक्ति या प्राणी दिखाई देंगे, जो दया, क्षमा. प्रेम, सेवा, करुणा, बन्धुता, समता आदि गुणों में अपने से कई गुने अधिक हैं, 'अथवा जो स्वयं व्रतबद्ध या महाव्रतबद्ध होकर धर्मप्रधान दृष्टि से या अहिंसक दृष्टि से समाज का निर्माण करने में अहर्निश जुटे हुए हैं, वे आत्मकल्याण के साथ-साथ समाजकल्याण करने में संलग्न हैं, कई व्यक्ति राष्ट्र का अहिंसक ढंग से कायाकल्प करने में, उसे परन्त्रता से मुक्त करने में लगे हुए हैं। इसके लिए वे अपनी सुख-सुविधा छोड़कर, भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी आदि की परवाह न करके, जेलों का यातनापूर्ण जीवन बिता करके भी सेवा-भाव से जुटे हुए हैं। ऐसे भी हैं जो समाज के लिए अपनी शक्तियों और क्षमताओं का उपयोग करने में प्रवृत्त हैं । दूसरी ओर ऐसे भी महान् पुरुष है, जो रागद्वेष एवं मोह से सर्वथा रहित हैं, जो नि:स्पृह, निरभिमान, निर्द्वन्द्व होकर आत्म-साधना करके सिद्धि प्राप्त कर चुके हैं अथवा करने में संलग्न हैं, जो आत्मभावों में ही रमण करते है, आत्म-समाधि में लीन हैं, ऐसे सभी गुणीजनों को प्रेरणामूर्ति मानकर उनके प्रयासों एवं गुणों को देखकर मन ही मन प्रमुदित होना, उन्हें प्रोत्साहन देना, उनकी प्रशंसा करना, उन्हें सार्वजनिक प्रतिष्ठा देना और सर्वोत्तम वीतराग पुरुषों (चाहे उनका नाम कुछ भी हो, वे चाहे जिस धर्म सम्प्रदाय के हों) के प्रति श्रद्धा-भक्ति रखना और व्यक्त करना प्रमोदभावना है। स्वपर कल्याणसाधक साधुजनों के प्रति तो गुणग्राहक दृष्टि होनी ही चाहिए । इसी आशय से 'भगवती आराधना' में प्रमोद(मुदिता)भावना का लक्षण इस प्रकार दिया है: __ "मुदिता नाम यतिगुणचिन्ता, यतयो हि विनीता विरागा विभया विमाना विरोषा विलोभा इत्यादिकाः ।"१ संयमी साधुओं के गुणों का विचार करके उनके गुणों के प्रति आह्लाद उत्पन्न होना प्रमोद(मुदिता)भावना है। संयमी साधुओं में विनम्रता, वैराग्य, निर्भयता, निरभिमानता, रोष-दोष रहितता और निर्लोभता आदि गुण रहते हैं । एक साधक ने प्रमोदभावना का रूप इसी प्रकार का व्यक्त किया है १. भगवती आराधना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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