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________________ समत्वयोग-एक समनवयदृष्टि तरह से उसका जीवन नारकीय बन चुका था । जलन और कुढ़न ही उसकी बुद्धि में डेरा डाले हुए थे । उसका शरीर सूखकर काँटा हो गया था। उसके पड़ोसी और मित्र भी कहने लगे थे कि अब एक दो महीने का मेहमान है यह । बढिया पौष्टिक भोजन करने पर भी उसका शरीर दुर्बल बना रहता था, क्योंकि द्वेष, घृणा आदि राक्षसी भाव उसके स्वास्थ्य को चौपट कर डालते थे । एक मनोवैज्ञानिक मित्र ने उसे सुझाव दिया - "अपनी भावनाओं में परिवर्तन कर डालिए । कुछ दिन के लिए किसी अपरिचित नये स्थान में चले जाइए, और वहाँ के लोगों को अपने कुटुम्बी मानकर उनमें मैत्री, प्रेम, आत्मीयता, सद्भावना, हितैषिता, उदारता और उत्सर्ग आदि भावों का अभ्यास करिए । आपके जीवन में मैत्रीभावना जितनी गहरी होगी, उतने ही आप स्वस्थ होते जायेंगे । आपका जीवन दिव्य एवं सुन्दर बन जाएगा ।" स्टीवेन्सन ने थोड़ा-सा सामान तथा कुछ धन लिया और समोआ द्वीप में जा बसा। पहले दिन पहला अभ्यास किया मैत्री एवं प्रेम का । जो भी मिला, उसे नमस्कार करने के लिए स्टीवेन्सन का हाथ पहले उठा । कोई घर आया वह चाहे कुली ही रहा हो, स्टीवेन्सन उस के साथ बैठकर चाय-पान किया। छोटे-छोटे बच्चे सवेरा होते ही स्टीवेन्सन का द्वार खटखटाते और उसे जगाकर खेलने के लिए आह्वान करते । स्टीवेन्सन बच्चों में ऐसे घुल-मिल जाता कि उसे पता भी न चलता कि दूसरे वयस्क लोग भी उसके यहाँ आ पहुँचे हैं । स्टीवेन्सन उन्हें मैत्री की मधुर कहानियाँ सुनाता, महापुरुषों के जीवन-संस्मरण भी कहता, बीच-बीच में उपदेश भी देता, लोग दिन भर कथा के आनन्द में झूमे रहते । मैत्रीपूर्ण हदय से दिये गए स्टीवेन्सन का उपदेश पाकर अपने जीवन की बुराइयाँ भी वे छोड़ने लगे । मैत्रीभावना के कुछ ही महीनों के अभ्यास ने स्टीवेन्सन का तन-मन बदल डाला। उसका स्वस्थ और हृष्ट पुष्ट शरीर देखकर कोई पूर्व परिचित नहीं कह सकता था कि वही स्टीवेन्सन है। सभी आवासियों के संगठित श्रमदान से उसने बंदरगाह से नगर तक का रास्ता चौरस और पक्का बनवा दिया जिसका नाम रखा गया प्रेमी हृदय का मार्ग । यह था मैत्रीभावना का अचूक प्रभाव, जिसने स्टीवेन्सन और उसके सम्पर्क में आने वालों का तन, मन और जीवन बदल दिया । अमेरिका के किसी पत्रकार ने एक भेंट में धनकुबेर श्री हेनरी फोर्ड से Jain Education International tional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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