________________ ( 68 ) नहीं। इसके समर्थन में कोई उल्लेख भी नहीं है / आज का दिगंबर समाज जिस किसी कारण से श्वेताम्बरसम्मत आगमों को न मानता हो उसकी खोज करना जरूरी है किन्तु उसका कारण यह तो नहीं हो सकता कि चूंकि अंग सार्वजनिक हो गये थे अतएव वे दिगंबर समाज में मान्य नहीं रहे। अतएव पंडितजी का यह लिखना कि "उसने इस विषय में जन-जन की स्मृति को प्रमाण नहीं माना" निराधार है, कोरी कल्पना है। आखिर जिनके लिए पंडितजी ने 'जन-जन' शब्द का प्रयोग किया है वे कौन थे ? क्या उन्होंने अपने गुरुपों से मंगज्ञान लिया ही नहीं था ? अपनी कल्पना से ही अंगों का संकलन कर दिया था ? हमारा तो विश्वास है कि जिनको पंडितजी ने 'जन-जन' कहा है वे किसी प्राचार्य के शिष्य ही थे और उन्होंने अपने प्राचार्य से सीखा हुआ श्रुत ही वहां उपस्थित किया था। इसीलिए तो कहा गया है कि जिसको जितना याद था उसने उतना वहाँ उपस्थित किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org