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________________ ( ६१ ) ई० ७२३ = वीर - निर्वाण १२५० में विवाहप्रज्ञप्ति और छः अंगों का विच्छेद १३०० में समवायांग का विच्छेद ई० ७७३ = १३५० में ठाणांग का १४०० में कल्प व्यवहार का १५०० में दशाभूत का १६०० में सूत्रकृतांग का "" २००० में विशाख मुनि के समय में निशीथ का २३०० में आचारांग का ई० ८२३ = ई० ८७३ ई० ६७३ = ई० १३७३ = ई० १४७३ = ई० १७७३ = " 23 27 "" Jain Education International "" 77 33 दुसमा के अंत में दुप्पसह मुनि के होने के कि वे ही अंतिम श्राचारवर होंगे । इसके बाद निर्दिष्ट है कि उसके ई० १६६७३ = वोरनि० ई० २०३७३ = ई० २०४७३ = ई० २०४७३ = "" " " २०५०० २०६०० २१००० २१००० " " 17. " " उल्लेख के बाद यह कहा गया है। बाद अनाचार का साम्राज्य होगा । For Private & Personal Use Only में उत्तराध्ययन का विच्छेद में दर्शा ० सूत्र का विच्छेद में दशवै ० के अर्थ का विच्छेद दुप्पसह मुनि की मृत्यु के बाद । पर्यन्त आवश्यक, अनुयोगद्वार और नंदी सूत्र व्यवच्छिन्न रहेंगे । - तित्थोगाली गा० ६६७-८६६. तित्थोगालीय प्रकरण श्वेताम्बरों के अनुकूल ग्रन्थ है ऐसा उसके अध्ययन से प्रतीत होता है । उसमें तीर्थंकरों की माताओं के १४ स्वप्नों का उल्लेख है गा० १००, १०२४; स्त्री-मुक्ति का समर्थन भी इसमें किया गया है गा० ५५६ ; आवश्यकनियुक्ति की कई गाथाएं इसमें आती हैं गा० ७० से, ३८३ से इत्यादि अनुयोगद्वार और नन्दी का उल्लेख और उनके तीर्थंपर्यंन्त टिके रहने की बात ; दशाश्चयं की चर्चा गा० ८८७ से; नन्दीसूत्रगत संघस्तुतिका अवतरण गा० ८४८से है । आगमों के क्रमिक विच्छेद की चर्चा जिस प्रकार जैनों में है उसी प्रकार बौद्धों के अनागतवंश में भी त्रिपिटक के विच्छेद की चर्चा की गई है। इससे प्रतीत होता है कि श्रमणों की यह एक सामान्य धारणा है कि श्रुत का विच्छेद क्रमशः होता है । तित्थोगाली में श्रंगविच्छेद की चर्चा है इस बात को व्यवहारभाष्य के कर्ता ने भी माना है www.jainelibrary.org
SR No.002543
Book TitleJain Sahitya ka Bruhad Itihas Prastavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size2 MB
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