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________________ 10 पूर्वों के आधार पर लिखे गए बताये जाते हैं।' स्थानांगसूत्र स्वर की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें सात स्वर ( षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद) सात स्वरों के सात स्वरस्थान जिहा का अग्रभाग, उरस्थल, कण्ठ, जिहा का मध्य भाग, नासा, दन्त - ओष्ठ संयोग, सिर, सात जीव निश्रित- मयूर, कुक्कुट, हंस, गवेलक, गोयल, क्रौंच, हाथी, सात अजीवनिश्रित स्वर- मृदंग, गोमुखी, शंख, झल्लरी, गोधिका, ढोल, महाभेरी वर्णित है । " सात स्वरों के सात स्वरलक्षण बताये गये हैं 2 १. षड्जस्वरवाला आजीविका प्राप्त करता है, उसका प्रयत्न व्यर्थ नहीं जाता। उसके गायें, मित्र और पुत्र होते हैं। वह स्त्रियों को प्रिय होता है। २. ऋषभस्वरयुक्त मनुष्य ऐश्वर्य, सेनापतित्व, धन, वस्त्र, गन्ध, आभूषण, स्त्री, शयन और आसन को प्राप्त करता है । ३. गान्धारस्वर वाला मनुष्य गाने में कुशल, वादित्र - वृत्तिवाला, कलानिपुण, कवि, प्राज्ञ और अनेक शास्त्रों का पारगामी होता है। ४. मध्यमस्वरसम्पन्न पुरुष सुख से खाता, पीता, जीता और दान देता है। ५. पंचमस्वरवाला पुरुष भूमिपाल, शूरवीर, संग्राहक और अनेक गणों का नायक होता है। ६. धैवतस्वरयुक्त मनुष्य कलहप्रिय, पक्षियों को मारने वाला, हिरण, शूकर और मच्छी मारने वाला होता है। ७. निषादस्वरवाला पुरुष चाण्डाल, वधिक, मुक्केबाज, गो-घातक, चोर और अनेक प्रकार के पाप करने वाला होता है। इन सात स्वरों के तीन ग्राम कहे हैं - षड्ज, मध्यम और गान्धार | षड्जग्राम, मध्यम और गान्धारग्राम की सात-सात मूर्च्छनाएँ, सातों स्वर की योनि, उत्पत्ति स्थल, श्वासोच्छ्वास में गाया जाने वाला चरण, गीत का आकार, गीत के छह दोष, आठ गुण, तीन वृत्त और दो भणितियों का विस्तृत वर्णन स्थानांग सूत्र में किया गया है । " इन्हें जानने वाला व्यक्ति ही रंगमंच पर गा सकता है। इसी प्रसंग में गीत गाने वाली स्त्रियों के लक्षण बताते हुए कहा गया है- श्याम स्त्री मधुर गीत गाती है, काली स्त्री खर और कक्ष, केशी स्त्री चतुर, काणी स्त्री विलम्ब, अंधी स्त्री द्रुत और पिंगला स्त्री विस्वर गीत गाती है । " सप्तस्वरसीभर की व्याख्या स्थानांग सूत्र का विशेष आकर्षण है।' 15 16 84 Jain Education International For Private & Personal Use Only स्वाध्याय शिक्षा www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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