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________________ दसवें अंग प्रश्नव्याकरण में भी चर्चा मिलती है। अब हम वाद्यों की चर्चा आगमिक संदर्भ में करेंगे। अनेक प्रकार के वाद्यों का उल्लेख जैन सूत्रों में उपलब्ध होता है। स्थानांग सूत्र में तत (तन्तुवाद्य-जैसे वीणा), वितत (मढ़े हुए वाद्य-जैसे पटह आदि), घन (कांस्यताल आदि), झुसिर (फूंक से बजाये जाने वाले वाद्य बांसुरी आदि) नामक चार प्रकार के वाद्य बताये गये हैं।" राजप्रश्नीय में अनेक प्रकार के वाद्यों की चर्चा है। सूर्याभ देव आमलकप्पा नगरी में भगवान महावीर के दर्शनार्थ आया तो उसने अनेक प्रकार के वाद्यों की वैक्रियशक्ति से रचना की- शंख, शृंग, शृंगिका, खरमुही, पेया, पिरिपिरिका, पणव, पटल, भंभा, होरंभा, भेरी, झल्लरी", दुन्दुभि", मुरज, मृदंग, नंदीमृदंग, आलिंग', कुस्तुंब, गोमुखी, मर्दल', वीणा, विपंची, वल्लकी, चित्रवीणा, बद्धीस, सुघोषा, नंदिघोषा, भ्रामरी, षड्भ्रामरी, करवादनी, तूणा, तुम्बवीणा, आमोट, झंझा, नकुल, मुकुन्द, हुडुक्का, विचिक्की, करटा', डिंडिभ, किणित, कडंब, दर्दर, दर्दरिका, कलशिका, महुया, तल, ताल, कांस्यताल, रिंगिसिका, लत्तिया, मगरिका, शिशुमारिका, वंश, वेणु, वाली, परिलि और बद्धक । वाद्यों की संख्या में मतभेद है। मूलपाठ में संख्या ४६ है और पाठानुसार संख्या ५६ है। इस पर टीकाकार ने इस भिन्नता का समन्वय किया है। आचारांग में किरिकिरिया वाद्य का वर्णन है", जो बांस आदि की लकड़ी से बना हुआ होता था। सूत्रकृतांग में 'कुक्कयय' और 'वेणुपलाशिय' बांसुरियों का वर्णन है, जो दांतों में बायें हाथ से पकड़कर वीणा की भांति दायें हाथ से बजाई जाती थी। भगवतीसूत्र की टीका में जीवाभिगम", जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति", निशीथसूत्र आदि में भी अनेक वाद्यों का उल्लेख है। बृहत्कल्पभाष्य में बारह वाद्यों का उल्लेख है।" रामायण" और महाभारत में भी मड्डक, पटह आदि वाद्य वर्णित हैं। भरत के नाट्यशास्त्र में, ततवाद्यों में, विपंची और चित्रा को मुख्य और कच्छपी एवं घोषका को उनका अंग माना है। चित्रवीणा की सात तंत्रिया थी, विपंची में नौ तंत्रिया थीं। ये क्रमशः हाथ और कोण से बजायी जाती थी।" संगीतदामोदर में तत के २६ प्रकार बताये हैं।" आयारचूला और निशीथ में तत के अन्तर्गत आठ वाद्य आते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्राचीन साहित्य में विविध वाद्यों की विविध एवं विस्तृत चर्चायें हैं। स्वाध्याय शिक्षा -- - 85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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