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इसके उत्तर में भगवान फरमाते हैं कि
"काउस्सग्गेणं तीयपडुप्पण्णं पायच्छित्तं विसोहेइ विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे णिन्युयहियए ओहरियभरुव मारवहे पसत्थज्झाणोवगए सुहं सुहेणं विहरइ।।"
कायोत्सर्ग करने से भूतकाल और वर्तमान काल के दोषों का प्रायश्चित्त करके जीव शुद्ध बनता है और जिस प्रकार बोझ उतर जाने से मजदूर सुखी होता है उसी प्रकार प्रायश्चित्त से विशुद्ध बना हुआ जीव शान्त हृदय बन कर शुभ ध्यान ध्याता हुआ सुखपूर्वक विचरता है। छठा आवश्यक-प्रत्याख्यान
प्रत्याख्यान छठा आवश्यक है। प्रत्याख्यान का सामान्य अर्थ है-त्याग करना। प्रत्याख्यान में तीन शब्द है- प्रति+आ+ख्यान। अविरति एवं असंयम के प्रति अर्थात् प्रतिकूल रूप में "आ" अर्थात् मर्यादा स्वरूप आकार के साथ, ‘ख्यान' अर्थात् प्रतिज्ञा को 'प्रत्याख्यान' कहते हैं अथवा अमुक समय के लिए पहले से ही किसी वस्तु के त्याग कर देने को 'प्रत्याख्यान' कहते हैं। अविवेक आदि से लगने वाले अतिचारों की अपेक्षा जानते हुए दर्प आदि से लगे बड़े अतिचारों की प्रत्याख्यान शुद्धि करता है अथवा प्रतिक्रमण और कायोत्सर्ग के द्वारा अतिचार की शुद्धि हो जाने पर प्रत्याख्यान द्वारा तप रूप नया लाभ होता है, अतःप्रत्याख्यान को छठा स्थान दिया गया है।
जो साधक कायोत्सर्ग द्वारा विशेष चित्त-शुद्धि, एकाग्रता और आत्मबल प्राप्त करता है, वही प्रत्याख्यान का सच्चा अधिकारी है। अर्थात् प्रत्याख्यान के लिए विशिष्ट चित्त शुद्धि और विशेष उत्साह की अपेक्षा है। जो कायोत्सर्ग के बिना संभव नहीं है, अतः कायोत्सर्ग के पश्चात् प्रत्याख्यान को स्थान दिया गया है।
___ अनुयोगद्वारसूत्र में प्रत्याख्यान का नाम 'गुणधारण' कहा है। गुणधारण का अर्थ है- व्रत रूप गुणों को धारण करना। प्रत्याख्यान के द्वारा आत्मा को मन, वचन, काया की दुष्ट प्रवृत्तियों से रोक कर शुभ प्रवृत्तियों पर केन्द्रित करता है। ऐसा करने से इच्छा-निरोध, तृष्णा का अभाव, सुख-शान्ति आदि अनेक सद्गुणों की प्राप्ति होती है।
उत्तराध्ययन सूत्र के उनतीसवें अध्ययन में प्रत्याख्यान का फल इस प्रकार बताया है
"पच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?" हे भगवन्! प्रत्याख्यान से जीव को क्या लाभ होता है ? इसके उत्तर में प्रभु
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स्वाध्याय शिक्षा
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