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________________ चारित्र और तप में तल्लीन होना। सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ही मोक्ष मार्ग है। मोक्ष मार्ग में सामायिक मुख्य है, यह बताने के लिए ही सामायिक आवश्यक को सबसे प्रथम रखा गया है। भगवती सूत्र शतक १ उद्देशक में फरमाया है कि “आया सामाइए, आया सामाइयस्स अट्ठे" अपने शुद्ध स्वरूप में रहा हुआ आत्मा ही सामायिक है। शुद्ध-बुद्ध-मुक्त चिदानन्द स्वरूप आत्मतत्त्व की प्राप्ति करना ही सामायिक का प्रयोजन है। मैं कौन हूँ? मेरा स्वरूप कैसा है? आदि विचारने में तल्लीन होना, आत्मगवेषणा करना सामायिक है। अनुयोगद्वार सूत्र में सच्चा सामायिक व्रत क्या है? इसकी परिभाषा बताते हुए कहा है "जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे। तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं।।" अर्थात् जिसकी आत्मा संयम, नियम और तप में तल्लीन है उसी का नाम सामायिक व्रत है, ऐसा केवल ज्ञानियों ने फरमाया है। "जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य। . तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं।।" अर्थात जो त्रस और स्थावर सभी जीवों को अपनी आत्मा के समान मानता है, सभी प्राणियों पर समभाव रखता है, उसी का सामायिक व्रत सच्चा है, ऐसा केवलज्ञानियों ने फरमाया है। ___सामायिक के आध्यात्मिक फल के लिए गौतम स्वामी प्रभु महावीर स्वामी से पूछते हैं कि __ "सामाइएणं भंते! जीवे किं जणयइ?" हे भगवन्! सामायिक करने से जीव को क्या लाभ होता है। भगवान ने फरमाया "सामाइएणं सावज्जजोगविरई जणयइ" सामायिक करने से सावध योग से निवृत्ति होती है। (उत्तराध्ययन सूत्र अ. २६) अर्थात् पाप कर्मों से सम्पूर्ण निवृत्ति होने पर आत्मा पूर्ण विशुद्ध और निर्मल बन जाती है, यानी मोक्ष पद को प्राप्त कर लेती है। सामायिक की साधना उत्कृष्ट है। सामायिक के बिना आत्मा का पूर्ण विकास असंभव है। सभी धार्मिक साधनाओं के मूल में सामायिक रहा हुआ है। जैन - 73 . स्वाध्याय शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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