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________________ आवस्सय का संस्कृत रूप जो आवासक होता है। उसका अर्थ है- अनुरंजन करना । जो आत्मा को ज्ञानादि गुणों से अनुरंजित करे, वह आवासकआवस्य कहलाता है । " 5 जो ज्ञानादि गुणों के द्वारा आत्मा को आवासित - आच्छादित करे वह आवासक - आवास्सय है। जब आत्मा ज्ञानादि गुणों से आच्छादित रहेगा तो दुर्गुण रूप धूल आत्मा पर नहीं पड़ने पाएगी। 6 अनुयोगद्वार सूत्र में आवश्यक शब्द के आवश्यक, अवश्यकरणीय' आदि जो पर्यायवाची बताएँ हैं वे इस प्रकार हैं १. आवश्यक - अवश्य करने योग्य कार्य आवश्यक कहलाता है। सामायिक आदि की साधना चतुर्विध संघ के द्वारा अवश्य रूप से करने योग्य है, अतः आवश्यक है । २. अवश्यकरणीय - मुमुक्षु साधकों द्वारा नियमेन अनुष्ठेय होने के कारण अवश्यकरणीय है। ३. ध्रुवनिग्रह - अनादि होने के कारण कर्मों को ध्रुव कहते हैं। कर्मों का फल जन्म- जरा-मरण आदि भी अनादि है अतः वह भी ध्रुव है। अतः जो कर्म और कर्म फलस्वरूप संसार का निग्रह करता है, वह ध्रुवनिग्रह है। ४. विशोधि— कर्ममलिन आत्मा की विशुद्धि का हेतु होने से आवश्यक 'विशोधि' कहलाता है। ५. अध्ययन षट्कवर्ग - आवश्यक सूत्र के सामायिक आदि छह अध्ययन हैं अतः अध्ययन षट्क वर्ग है। ६. न्याय— अभीष्ट अर्थ की सिद्धि का सम्यक् उपाय होने से न्याय है अथवा आत्मा और कर्म के अनादिकालीन संबंध का अपनयन करने के कारण भी न्याय कहलाता है। ७. आराधना - मोक्ष की आराधना का हेतु होने से आराधना है। ८. मार्ग- मार्ग का अर्थ है- उपाय । मोक्षपुर का उपाय होने से मार्ग है। आवस्सय शब्द के उपर्युक्त व्युत्पत्तिपरक विभिन्न अर्थ आवश्यक की महत्ता का दिग्दर्शन करा रहे हैं। आवश्यक के भेद सम्यग्ज्ञान आदि गुणों का पूर्ण विकास करने के लिए जो क्रिया अर्थात् साधना अवश्य करने योग्य है, वह आवश्यक है। आवश्यक सूत्र में वर्णित आवश्यक के छह भेद इस प्रकार हैं स्वाध्याय शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only 71 www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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