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आचारांगसूत्र में परिकर के अनेक सुन्दर उदाहरण मिलते हैं। हिंसा में प्रवृत्त होने वाले मनुष्यों के लिए चार साध्रिपाय विशेषणों का प्रयोग कवि ने किया है
अट्टे लोए परिजुण्णे दुस्संबोहे अविजाणए।" भगवान महावीर के लिए सात साभिप्राय विशेषणों का प्रयोग मननीय है।
एस विहीं अणुक्कतो माहणेण मईमया।
अपडिण्णेण वीरेण कासवेण महेसिणा।।' उपासकदशाध्ययन के प्रारंभ में ही आर्य सुधर्मा के वर्णन क्रम में अनेक विशेषणों का प्रयोग हुआ है।
जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे बलसंपण्णे रूवसंपण्णे विणयसंपण्णे...12
इस प्रकार अनेक अलंकारों का सुन्दर विनियोजन आगमों में उत्कृष्ट काव्यत्व की उपस्थिति का संसूचक है। 4. शैली
अभिव्यक्ति के प्रकार, पद्धति आदि को शैली कहते हैं। पदविन्यास आदि को शैली कहते हैं। इसे रीति भी कहते हैं। प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति ही शैली है। लेखक, कवि और कलाकार द्वारा अपनी कल्पना में विद्यमान विश्व की अभिव्यक्ति के साधन एवं पाठक को संतुष्ट, आकर्षित और मुग्ध करने के माध्यम को शैली कहते हैं। शैली व्यंजनात्मक युक्ति है जिससे भाषा की शक्ति का संवर्द्धन होता है। आगमकारों ने अनेक शैलियों का प्रयोग किया है। जिनमें प्रमुख हैं- सूत्रात्मक शैली, चौर्ण शैली, भेदस्वरूपविवरणात्मक शैली, प्रश्नोत्तर शैली, संवाद शैली, पृष्ठावलोकन शैली, मण्डनस्थापत्य, उपचारवक्रता, कौतुहलसंवर्धका शैली, उदात्तीकरण, मनोविकारविरेचक, चित्रात्मक शैली आदि। सूत्रात्मक शैली में अल्प शब्दों में अधिक का विवेचन कर दिया जाता है। आचारांग इस शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। से आयावाई लोगावाई कम्मावाई किरियावाई-आचारांग 1.1.5। इस पंचपदात्मक वाक्य में जैनधर्म के चार स्तम्भों का निरूपण है, जिस पर जैन धर्म का अस्तित्व आधारित
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पणया वीरा महावीहिं 1.1.371 सब्जेसिं जीवियं पियं 1.2.64
चौर्णशैली गद्य-पद्य मिश्रित होती है। आचारांग में इसका उदाहरण देखा जा सकता है। 5. सूक्ति
सूक्ति साहित्य की शोभा को बढ़ाती है। साहित्य के आदिकाल से ही सूक्ति
स्वाध्याय शिक्षा -
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