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का भी प्रयोग होने से गुणात्मक चारुता का संवर्द्धन हुआ है।
उत्तराध्ययन में राजर्षि नमि के प्रसंग में माधुर्यगुण की अतिशयता अभिव्यंजित हो रही है
नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सक्केण चोइयो, चइउण गेहं वइदेही सामण्णे पज्जुवढिओ। एवं करेन्ति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा,
विणियन्ति भोगेसु जहा से नी रायरिसी।।"
अर्थात् इन्द्र द्वारा वन्दन किए जाने पर राजर्षि नमि ने अपनी आत्मा को विनत किया। साक्षात् देवेन्द्र के द्वारा प्रेरित किए जाने पर गृह और वैदेही (मिथिला की राजलक्ष्मी) को त्यागकर श्रामण्य भाव की आराधना में तत्पर हो गए। जो संबुद्ध, पंडित और प्रविचक्षण हैं, वे इसी तरह धर्म करते है तथा कामभोगों से निवृत्त हो जाते हैं।
___ ज्ञाताधर्मकथा का एक सुन्दर उदाहरण, जिसमें देवी धारिणी के कमनीय रूप सौन्दर्य का रमणीय चित्रण मिलता है
तस्स णं सेणियस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था सुकुमाल- पाणिपाया अहीणपंचिंदियसरीरालक्खणवंजणगुणोववेया माणुम्माणप्प- माणसुजायसव्वंगसुदरंगी ससिसोमाकारकंतपियदसणा......।"
उपासकदशाध्ययन सूत्र में शिवनन्दा के वर्णन में माधुर्य गुण का रमणीय उपस्थापन हुआ है- तस्स णं आणंदस्स गाहावइस्स सिवानंदा नाम भारिया होत्था पडिपुण्णपंचिंदियसरीरा......सुरूवा। ओज गुण-जो गुण मन में उत्साह, वीरता आदि को जागृत करे, उस दीप्तिप्रधान गुण को ओज कहते हैं। उसका उत्तरोत्तर विकास वीर, बीभत्स तथा रौद्ररसों में देखा जाता है।
दीप्त्यात्म-विस्तृतेर्हे तुरोजो वीररस-स्थितिः । बीभत्सरौदरसयोस्तस्याधिक्यं क्रमेण च।।
आगमों में अनेक स्थलों पर ओज गुण की उपस्थिति है। तपश्चर्या की उत्कटता, संयमवीरता, व्रतों में उत्तरोत्तर उत्साह का संवर्धन, राजाओं के युद्ध का वर्णन, दुष्ट देवों के द्वारा साधकों को दिए जाने वाले उपसर्गों के निरूपण-क्रम में ओजगुण का प्रयोग हुआ है।
- भगवान महावीर के साधना-जीवन में उत्तरोत्तर विकसित उत्साह का साम्राज्य विद्यमान है। जिस श्रद्धा के साथ भगवान ने अभिनिष्क्रमण किया था, उसी श्रद्धा के साथ अन्तकाल तक साधना में लगे रहे। लाख विघ्न-बाधाओं एवं अन्तरायों ___62 - --- -
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