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________________ अनर्थ शब्द का अभाव में अभिप्राय है। बिना अर्थ, व्यर्थ, हित शून्य और विलोम रूप में अभिप्राय है- हानिप्रद। अतः जो कार्य अपने लिये हितकर न हो और दूसरों के लिये भी हानिकारक हो उसे अनर्थ दण्ड कहते हैं। जैसे- मनोरंजन के लिये ऊँटों की पीठ पर बच्चों को बांधकर ऊँटों को दौड़ाना, जिससे बच्चे चिल्लाते हैं तथा गिरकर मर जाते हैं, मुर्गी को व सांडों को परस्पर में लड़ाया जाता है। आजकल सौन्दर्य प्रसाधन-सामग्री के लिये अनेक पशु-पक्षियों की निर्मम हत्याएँ की जाती हैं, इस प्रकार प्रसाधन-सामग्री के निर्माण में पशुओं का वध तो होता ही है तथा सामग्री का उपयोग करने वाले के स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचती है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ जो स्वादिष्ट वस्तुएँ बनाती हैं, उससे उन खाद्य पदार्थों के विटामिन-प्रोटीन आदि प्रकृति प्राप्त पोषक तत्त्व तो नष्ट हो ही जाते हैं, साथ ही उनका मूल्य बीसों गना हो जाता है जो अर्थ की बहुत बड़ी हानि या दंड है अर्थात् अनर्थदण्ड है। आज भोग-परिभोग के लिये जिन कृत्रिम वस्तुओं का निर्माण हो रहा है उन वस्तुओं के लाभकारी गुण या तत्त्व तो नष्ट हो ही जाते हैं, साथ ही वे स्वास्थ्य तथा आर्थिक दृष्टि से हानिकारक भी होती हैं, अतः वे अनर्थदण्ड रूप ही हैं। यही नहीं तली हुई चरपरी-चटपटी मिर्च, मसालेदार वस्तुओं को भी अनर्थदण्ड रूप में लिया जा सकता है, क्योंकि ये शरीर के लिये हानिकारक होती हैं, पाचन शक्ति बिगाड़ती हैं। आस्ट्रेलिया, यूरोप आदि देशों के विकसित नागरिक स्वास्थ्य के लिये ऐसी तली हुई, मिर्च, मसालेदार वस्तुओं को प्रयोग में लेना उचित नहीं मानते हैं। अतः इन्हें भी अनर्थदण्ड के रूप में लिया जा सकता है। ये शरीर के लिये हानिकारक होती हैं, पाचन शक्ति बिगाड़ती हैं। सिन्थेटिक वस्त्र भी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं, इसलिये अब विदेशों में पुनः सूती वस्त्रों को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है। जिससे इनकी मांग बढ़ी है। यदि अनर्थदण्ड विरमण-व्रत का पालन किया जाय तो इन सब प्रदूषणों से बचा जा सकता है। 9. सामायिक 10. देशावकासिक 11. पौषधव्रत ये तीनों व्रत मानसिक एवं आत्मिक विकारों/प्रदूषणों से बचने तथा गुणों का पोषण करने के लिये हैं। अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों में समभाव से रहना, उनसे प्रभावित न होना, उनके प्रति राग-द्वेष न करना, मन का संतुलन न खोना सामायिक है। इससे व्यक्ति परिस्थिति से अतीत हो जाता है, ऊपर उठ जाता है। फलतः सांसारिक सुख-दुःख के प्रभाव से मुक्त हो जाता है। फिर उसे तनाव, हीनभाव, अन्तर्द्वन्द्व, भय, चिंता जैसे मानसिक रोग या विकार नहीं सताते हैं। . स्वाध्याय शिक्षा 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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