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और उनके लाभ या गुण गाये जाते हैं। एन्टीबायोटिक दवाइयों से शरीर की प्रति रक्षात्मक शक्ति में भयंकर कमी होती है जिससे वृद्धावस्था में रोगों से प्रतिरोध करने की शक्ति नहीं रहती है। इस तथ्य को छिपाया जाता है और धड़ल्ले से विज्ञापन द्वारा इसके लाभप्रद होने का प्रचार किया जाता है।आज का विज्ञापन दाता विज्ञापित वस्तु से दीर्घ काल में होने वाली भयंकर हानि को छुपाकर तथा उनके तात्कालिक लाभ को बढ़ा-चढ़ा कर बताकर जनता को मायाजाल में फंसाता है, यह धोखा है। जैन साधना में ऐसे कार्य को मृषावाद कहा है और इसका निषेध किया गया है। मृषावाद-त्याग के सिद्धान्त को अपना लिया जाय तो ऐसे प्रदूषणों से बचा जा सकता
अपरा
3. अचौर्य व्रत
अपहरण करना चोरी है।वर्तमान में अपहरण के नये-नये रूप निकल गये. हैं। व्यापार द्वारा उपभोक्ताओं के धन का अपहरण तो किया ही जाता है, कल-कारखानों में श्रमिकों को श्रम का पूरा प्रतिफल न देकर श्रम का भी अपहरण किया जाता है, उनकी विवशता का लाभ उठाया जाता है। जीवनरक्षक दवाइयों के बीस-तीस गुणें दाम रखकर तथा नकली दवाइयाँ बनाकर रोगियों को मृत्यु के मुख में धकेला जाता है। लॉटरी के द्वारा गरीबों के कठिन श्रम से की गई कमाई का अपहरण किया जा रहा है। संक्षेप में कहें तो जितने भी शोषण के तरीके हैं वे सभी अपहरण के रूप हैं। बिना प्रतिफल दिये या कम प्रतिफल देकर अधिक लाभ उठाना शोषण या अपहरण है। यह अति भयंकर आर्थिक प्रदूषण है। इसी से आर्थिक विषमता उत्पन्न होती है। इससे गरीब अधिक गरीब और धनवान अधिक धनवान होते जा रहे हैं। इस विषमता से ही आज आर्थिक जगत में भयंकर प्रतिद्वन्द्व व संघर्ष चल रहा है। युद्ध का भी प्रमुख कारण यह आर्थिक शोषण व प्रतिद्वद्विता या होड़ ही है। जैन धर्म में अपहरण व शोषण का त्याग प्रत्येक मानव के लिये आवश्यक बताया है ताकि पर्यावरण संतुलित रहे। यदि इस व्रत का पालन किया जाय तो भूखमरी, गरीबी, आर्थिक लूट, अकाल मृत्यु, युद्ध आदि प्रदूषणों का अंत हो सकता है। 4. व्यभिचार का त्याग
चौथे व्रत में अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य समस्त प्रकार के यौन संबंधों को त्याज्य कहा है। जैन धर्मानुयायियों के लिये परस्त्रीगमन, वेश्यागमन तथा अतिभोग को सर्वथा त्याज्य कहा गया है। इससे एड्स जैसे असाध्य रोगों से सहज ही बचा जा सकता है। आज एड्स तथा यौन संबंधी अनेक रोग व प्रदूषण बड़ी तेजी से स्वाध्याय शिक्षा
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